SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ : : 1 महासतीजी से वार्तालाप के प्रसंग में नय और जब भी मुझे समय मिला तब मैं सभी सन्त-सतियों निक्षेप के सम्बन्ध में जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की। महा- को उनके आध्यात्मिक समुत्कर्ष के सम्बन्ध में पूछता सतीजी ने बहुत ही मधुर शब्दों में कहा-अनन्त रहा । एक दिन साध्वियों की संगोष्ठि भी रखी धर्मात्मक वस्तु के विवक्षित वर्म का ग्रहण करना गई थी। उस संगोष्ठि में महासती पुष्पवतीजी ने और अन्य धर्मों का खण्डन न करने वाला विचारनय अनेकान्तवाद पर अपने विचार अभिव्यक्त किये थे। है । वस्तु में अनन्त धर्म हैं। जब किसी एक धर्म मैं चाहता हूँ कि हमारे संघ में साध्वियां ज्ञान का प्रतिपादन किया जाता है तब उन अनन्त धर्मों के क्षेत्र में आगे बढ़ें। यदि वे ज्ञान में आगे बढ़ेगी के सम्बन्ध में कहना सम्भव नहीं हैं। क्योंकि वाणी तो श्राविका समाज को नया दिशा दर्शन दे सकेंगी। में उन अनन्त धर्मों की अभिव्यक्ति की क्षमता नहीं उन्हें रूढ़ियों से मुक्त करा सकेगी। बालकों में है। वाणी के द्वारा कुछ धर्मों का ही प्रतिपादन धार्मिक संस्कार समुत्पन्न कर सकेंगी । श्री देवेन्द्र किया जा सकता है। जो कुछ कहा जाता है अथवा मुनि हमारे संघ के एक तेजस्वी संत हैं जिनके सद् वचन की सारी विवक्षाएँ नय हैं । अपर शब्दों में प्रयास से महासती पुष्पवतीजी के व्यक्तित्व और । कहा जाय तो प्रमाण से परिगृहीत वस्तु के एक देश कृतित्व को उजागर करने वाला अभिनन्दन ग्रन्थ में जो वस्तु का निश्चय होता है वह नय हैं । द्रव्या- प्रकाशित होने जा रहा है। स्थानकवासी समाज में थिक और पर्यायाथिक इन दोनों नयों का विषयभूत यह एक पहला प्रयास है। इस प्रयास में आशा जो तत्त्वार्थ के ज्ञान का हेतु है वह निक्षेप है । निक्षेप करता हूँ स्थानकवासी समाज का जो साध्वियों का का प्रयोजन है प्रस्तुत की व्याख्या करके संशय को अज्ञात इतिहास है वह उजागर होगा और अनेक दूर करना। नय के सात और निक्षेप के चार नये तथ्य प्रकाश में आयेंगे। प्रकार हैं। मैं महासती पुष्पवतीजी को हार्दिक आशीर्वाद ___ सन् १९६४ में अजमेर में शिखर सम्मेलन का प्रदान करता हूँ, कि वे सम्यग्दर्शन, सम्यकज्ञान आयोजन था। मैं भी घाटकोपर बम्बई का वर्षा- और सम्यग्चारित्र के क्षेत्र में प्रतिपल, प्रतिक्षण वास सम्पन्न कर अजमेर पहुँचा । महासती पुष्पवती प्रगति करें। पूर्ण स्वस्थ और प्रसन्न रहकर जिन जी उस समय अपनी सद्गुरुणी श्री सोहनकुंवरजी शासन की प्रभावना में चार चाँद लगावें। भगवान महाराज के साथ वहाँ पर विराज रही थी। महा- महावीर के शब्दों मेंसती सोहनकुंवरजी एक तपी-तपायी प्रतिभा की नाणेणं दंसणे णं च, धनी साध्वी थी। उनका जीवन बहुत ही तेजस्वी चरित्तेण तहेव य । था। वे महास्थविरा थी। इस सम्मेलन में मुझे खंतीय मुत्तीए, श्रमणसंघ का आचार्य बनाया गया। चतुर्विध संघ वड्ढमाणो भवाहि य॥ का अपार स्नेह मुझे प्राप्त हुआ। इस सम्मेलन में आशीर्वचन ३ TV Prernation
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy