SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वारत्न पुष्पवती आभनन्दन ग्रन्थ सन् १९३७ का यशस्वी वर्षावास मनमाड़ महा- डिया की सुपुत्री है। जो उदयपुर के निवासी हैं। राष्ट्र का सानन्द सम्पन्न कर श्रद्धय गुरुवर्य महा- इसकी माताजी तीज कुंवर और इसके छोटे भाई स्थविर श्री ताराचन्दजी महाराज मालव की पुण्य धन्नालाल को भी उत्कृष्ट भावना है । इसके भूमि को पावन करते हुए सन् १९३८ में उदयपुर माताजी का हाथ जल जाने से वे दोनों इस समय पधारे । उस समय उदयपुर में हमारी सम्प्रदाय की उपचार के लिए हिम्मतनगर अपने भाई के पास गई महास्थविरा महासती श्री मदनकुंवरजी महाराज हुई हैं । जो वहाँ पर सर्जन हैं। विराज रही थी। उनकी सेवा में परम विदुषी साध्वीरत्न तपोमूर्ति महासती श्री सोहनकुंवरजी गुरुदेव श्री ने पूछा-इन दोनों की अभी बहुत महाराज थी। महासती श्री सोहनकंवरजी बहु- छोटी उम्र है । ये क्या अध्ययन कर मुखी प्रतिभा की धनी अध्यात्मयोगिनी साध्वी महासती सोहनकुँवरजी ने बताया कि उत्तराथी। उन्होंने अपनी माता व दो भाइयों के साथ नौ ध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी और विपाक सूत्र आदि वर्ष की उम्र में संयम मार्ग स्वीकार किया था। कण्ठस्थ किये हैं तथा ७०-८० थोकड़े भी याद किये उनमें अपूर्व तेज था तथा संघ-संचालन की अद्भुत हैं। अभी मैं इन्हें शास्त्रों की वाचना दे रही हूँ। कला थीं। वे पूज्य गुरुदेव के सामने पधारी । उस गुरुदेव श्री ने मुझे अपने पास बुलवाया और समय अन्य शिष्याओं के साथ ही दो लधु शिष्याएँ कहा-कि युग बदल चुका है, इस युग में बिना भी थी। उन शिष्याओं का परिचय प्रदान करती अध्ययन के न स्वयं को स्वावलम्बी बना सकते हैं और न दूसरों के प्रश्नों का समाधान ही कर सकते हैं । इसीलिए मैंने पुष्कर को व्याकरण, न्याय और विकास की कहानी, साहित्य का अध्ययन करवाया। अब यह जैसा मार्ग दर्शन दें वैसा इन दोनों का अध्ययन करवाओ। ये दोनों प्रतिभासम्पन्न लगती हैं। ये समाज का गुरु की जुबानी उत्थान भी करेंगी। -उपाध्याय श्री पुष्कर मनिजी म. गुरुदेव के आदेश को पाकर मैंने महासतीजी श्री सोहनकुंवरजी से कहा-सबसे पहले भाषा की विशुद्धि आवश्यक है और वह विशुद्धि व्याकरण के हुई, उन्होंने बताया कि इस साध्वी का नाम कुसुम- द्वारा ही हो सकती है । धातु और प्रत्यय के संश्लेवती है। ये देलवाड़ा के निवासी गणेशलालजी षण और विश्लेषण द्वारा भाषा के आन्तरिक गठन कोठारी की सुपुत्री हैं और इसका नाम गृह स्थाश्रम का विचार व्याकरण में होता है । लक्ष्य और लक्षणों में नजरबाई था । यह अपनी माताजी कैलाशकुँवर के द्वारा सुव्यवस्थित वर्ण न करना ही व्याकरण का के साथ सन् १९३६ में मेरे पास दीक्षित हुई है और समुद्देश्य है। व्याकरण शब्दों की उत्पत्ति और दूसरी महासती है पुष्पवती । यह जीवनसिंह बर- उनके निर्माण की प्राणवन्त प्रक्रिया का रहस्य भी ४] प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy