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________________ ALLLLLLLLLLLLLLLOO D .. साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ युग कैसा ही हो, उसमें कैसे ही बदलाव आते रहें पर हमारे जो शाश्वत जीवन मूल्य हैं उनमें कभी कोई बदलाव नहीं आने का है। इन मूल्यों में सर्वोपरि मूल्य परहित धर्म का है। यही जीवन-धर्म, समाज-धर्म और देश-राष्ट्रधर्म है जिसकी अनिवार्यता आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है। धर्म में हमने प्रकृति और पुरुष का, जलचर नभचर और थलचर किसी प्राणी का कोई भेद नहीं किया है। लोककथाएँ, सारी धर्मकथाएँ, व्रतकथाएँ इस जीवन-धर्म से ओत-प्रोत हैं। हर कथा के अच्छे-बुरे पक्ष हैं पर अंत में सभी देवी-देवताओं से यही कामना की जाती है कि जैसा अच्छी करणी का अच्छा फल हुआ वैसा ही फल हमें भी मिले और कभी भी हम बुरी करनी की ओर प्रवृत्त न हों। आज का युग अर्थप्रधान है। अर्थ के बिना जैसे सब कुछ अनर्थ है। अर्थ की यह होड़ा-होड़ी विश्वव्यापी है। सारी की सारी भौतिक समृद्धि- सुविधा इसी अर्थ की मूल भित्ति पर टिकी हुई है। धर्म ने इस अर्थकारी पहलू के साथ भी अपना समन्वय दिया है। एक कहानी है—'धर्म करने से धन बढ़ता है' इस कहानी में एक परिवार के सदस्यों का धर्म-अधर्म पक्ष उद्घाटित हुआ है जिसके सुफल-कुफल देखिये। कहानी है सेठ-सेठानी । भरा-पूरा घर । सात पुत्र और उनकी वधुएँ । सेठ सेठानी बड़े धर्मात्मा । प्रतिदिन पीपल पूजते, व्रत करते, कहानी कहते और आंवला भर सोना दान करके ही अन्न-जल मुँह में लेते। __ सबसे छोटे लड़के की बहू पड़ोसिन के वहां आग लेने गई तब पड़ोसिन ने उसके कान भरे कि तुम्हारे सास ससुर प्रतिदिन सोना दान करते हैं । ऐसे करते-करते तो सारा घर खाली हो जायेगा, बूंदबूंद करते तो समुद्र भी खाली हो जाता है फिर तुम्हारे पास क्या रहेगा ? बहू बोली-मैं क्या करूं, यह बात तो उनके पुत्र अर्थात् मेरे पति को सोचने की है। पड़ोसिन बोली-यदि पति नहीं सोचे तो फिर पत्नी तो सोचे । बहू ने कहा-कल हो देखना। दूसरे दिन सेठ-सेठानी नहा धोकर तैयार हुए। इतने में उनकी नजर ओवरे पर पड़ी जिसके एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था। पूछा-ताछी हुई । छः बहुओं ने तो मना कर दिया तब सातवीं ने कहाताला मैंने लगाया है, आप तो सारा धन-माल लुटाने बैठे हैं, पीछे से हमारा क्या होगा ? सेठजी बोलेबेटी! धरम करने से तो धन बढता है। सेठ-सेठानी ने सोचा कि अपने धर्म करने से बहू नाराज होती है अतः इस घर को ही छोड़ देना चाहिये । यह सोच, दोनों निकल गये। तेज गर्मी, जंगल में आंवला के नीचे सो गये । सेठजी को नींद आ गई । इतने में आंधी चली। आंवले गिरे कि गिरते ही सोने के हो जाते । सेठानी ने सेठजी को जगाया और कहा कि धरमराज तो यहां भी तूठमान हुए हैं। छोटकी बहू में अक्कल नहीं थी सो ओवरे के ताला लगा दिया। आंवलों से उन्होंने अपना कोथला भरा और आगे चले। चलते-वलते एक गांव आया जहां एक मकान किराये पर लिया। स्नान ध्यान किया, व्रत कथा कही और एक ब्राह्मण को बुलाया-आंवला भर सोना दान किया और फिर अन्न-जल लिया। उधर सेठ सेठानी के सभी पुत्र कंगाल हो गये । न खाने को अन्न रहा, न पहनने को वस्त्र । ___ सेठ-सेठानी ने तालाब बनवाने की सोची । गांव-गांव एलान कराया, सभी पुत्र और उनकी बहुएँ वहां मजदूरी करने आईं । सेठ-सेठानी को इस बात का पता चल गया कि उनके पुत्रों की स्थिति कण-कण की ::::::: :::: धर्म और जीवन-मूल्य : डॉ. महेन्द्र भानावत | १६१ www.jai
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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