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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ हो गई है। उन्होंने अपने यहां एक टोकर बांधी की धर्मराज के प्रताप से अन्य मजदूर आयें तब तो वह नहीं बजे और उनके घर के पुत्र और बहुएँ आयें तो बजे । यही हुआ पर वे सेठ-सेठानी को नहीं जान सके। तालाब बन गया तब सेठ-सेठानी ने उत्सव किया। पांच पकवान बनाये। पढ़े-लिखे ब्राह्मण बुलाये । इसमें सबसे बड़े पुत्र को मुनीमी का काम दिया । दूसरों को सामान उठाने और देखभाल करने का। सबसे छोटी बहू को जीमने के बाद सफाई का काम दिया। सब लोग जीम-बूट कर घर गये तब मजदूरों के जीमने की बारी आई। सबसे छोटी बह मजदूरिन को उल्टी बाज परोसी और पांच पकवान की जगह नमक की डली, खोटा तांबा का टक्का और नीम का पत्ता रखा, यह देख अन्य मजदूरनी महिलाएँ उठ खड़ी हुईं कि हमारी पंगत में यह पराई जात की कौन आ गई ? सेठ-सेठानी ने सबके हाथ जोड़े और कहा-सब प्रेम से जीमो। यह कोई पराई जात की नहीं है। हमारी सबसे छोटी बहू है जो पड़ोसिन के कहने में आ गई और ओवरे के ताला लगा दिया तथा हमें धरम-पुण्य नहीं करने दिया तो हम दोनों घर से ही निकल गये । यह नीम जैसी कड़वी, नमक जैसी खारी और खोटे पैसे जैसी खोटी है। यह सुनते ही छोटी बह जोर-जोर से रोने लग गई। अपनी गलती का एहसास कर वह सबके सामने अपने सास-ससुर के पांव पड़ी। उसके देखादेख अन्य बहुएँ और उनके पति भी उनके पांव पड़े और सब हिल-मिलकर रहने लगे। यह सब परहित धर्म का पुण्य-प्रताप था। धर्मराज ने बता दिया कि जो स्वयं तो धर्म-कर्म करते नहीं पर जो करते हैं उनके आड़े आते हैं, उनकी क्या गति-मति होती है। अपना हितधर्म तो सभी सोचते-करते हैं पर बलिहारी तो उनकी है जो परहित में अपना धर्म मानते हैं और उसी में जीवन को सरस सार्थक करते हैं। १६२ | पंचम खण्ड : सांस्कृतिक-सम्पदा www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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