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________________ प्रसाटवारत्नपवता आभनन्दन ग्रन्थ रखा है ? तुम्हारे में ऐसी कौन-सी विशेषता है बालक ने कहा-तुम्हारे में और मेरे में जिससे तुम्हें लक्ष्मी का फल बनने का सौभाग्य यही अन्तर है कि तुम वासना से ग्रसित हो और मैं प्राप्त हआ है। जो भो श्रेष्ठ कार्य होता है वहाँ वासना-मुक्त हूँ। वासना-मुक्त को ही लोग प्यार प्रथम तुम्हें स्थान मिलता है। तुम्हारे पारीर में करते हैं। सौन्दर्य का अभाव है। तुम्हारा सारा शरीर जटा से आच्छादित है, यदि ये जटा कोई हटा भी ले तो । एक दिन हरे-भरे लहलहाते हए खेतों ने तुम्हारे अन्दर की खोल इतनी मजबूत है कि उसे खेत मालिक से कहा-हमें कांटों से आप क्यों तोड़ने के लिए पत्थर चाहिये मेरी तरह न तो तुम्हारा परिवेष्टित करते हैं। सुन्दर शरीर है और न मेरे सदृश तुम्हारे में। कोमलता। मेरे में तो मधुर रस का सागर ही किसान ने कहा -तुम्हारी रक्षा के लिए लहरा रहा है। मेरे साथ तुम्हारी कहाँ तुलना हो मुझे यही उपाय अपनाना पड़ रहा है। सकती है ? नारियल ने शान्त वाणी में कहा-बहन ! 10 एक वृद्ध ने बालक से कहा--मैं तेरी मस्तो - को देखकर हैरान हूँ। तेरे में से कुछ मस्ती मुझे तुम्हें इतना घमण्ड नहीं करना चाहिये । मेरे शरीर भी दे दे। का कोई भी अवयव निरुपयोगी नहीं है । मेरी जटाओं से योगी-गण अपना आसन बनाते हैं तो भोगी -बालक ने कहा-आप भी मेरे सदृश गण भी सोफासेट जैसे अनेक आसनों में इनका उपयोग करते हैं। मेरी जटाएँ मलिन बर्तनों को भी चिन्तामुक्त और सरल बन जाइये, आपमें मस्ती निर्मल बनाती हैं तथा इनका उपयोग अनेक औषधियों स्वतः आ जायगा । में भी होता है और मेरी खोपड़ी पात्र बनकर अनेकों वृद्ध ने एक मेधावी छात्र से कहा-तू जिसे को जीवनदान देती है। मेरा पानी रुग्ण व्यक्तियों पढ़ता है, उसका अर्थ भी नहीं जानता तथापि तुझे को स्वस्थ बनाने में सक्षम है । मेरा गदाभाग मस्तिष्क की शक्ति के लिए उपयोगी है और मेरा पाठ याद कस रहता है। तेल खाने और लगाने इन दोनों में उपयोगी है।। बालक छात्र ने कहा-मैं केवल शब्द पक___ व्यक्ति का महत्त्व रूप के कारण, नहीं, गुणों ड़ता हैं पर आप शब्द और अर्थ दोनों पकड़ते हैं। इस के कारण होता है । बहन ! तुम्हारे से तो मदिरा दुविधा के कारण आपको स्मरण नहीं रहता है तैयार होती है जो समझदार व्यक्ति को भी पागल क्योंकि कहा भी है कि 'दुविधा में दोनों गये, माया बना देती है। मिली ना राम ।' द्राक्षा चुप होकर सुनती रही। बालक को उपालम्भ देते हए प्रपितामह 0 एक युवक ने नन्हें बालक को कहा--तू ने बालक से कहा-किसी वस्तु को प्राप्त करने के कितना भाग्यशाली है, जो तुझे युवतियां गोद में लिए तू कितना रोता है, कितनी हठ करता है और लेने को ललकती हैं। तुझे प्यार करने को छट- फिर कुछ समय के बाद उस वस्तु को जहाँ-तहाँ पटाती है। पर मेरी ओर तो आंख उठाकर भी फेंक देता है। तुझे वह वस्तु स्मरण भी नहीं नहीं देखती। रहती। २२४ | तृतीय खण्ड : कृतित्व दर्शन www.jaineestore
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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