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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन गन्थ AHARHAALLLLLLLLLLLLLLH M ___ बालक ने कहा- हमारा मस्तिष्क किसी भी मिलूंगा तो तुम्हारा वास्तविक स्वरूप ओझल नहीं वस्तु को पकड़कर नहीं रखता । हम परस्पर चाहे होगा। कितने भी लड़लें किन्तु कुछ समय बाद हमारी पानी ने कहा-मिलावट तो आखिर लड़ाई मित्रता में बदल जाती है। हमारे में जो मिलावट ही है। वह विकृति ही पैदा करती है। अनासक्ति है वही तो हमारी मस्ती का कारण है। जो प्रकृति में आनन्द है वह विकृति में नहीं। - एक जिज्ञासु ने पूछा-आनन्द कहां है ? - अग्नि जल रही थी। एक विचारक उधर । मैंने कहा-आनन्द तुम्हारे अन्दर ही है पर तुम से निकला उसने कहा-तू सभी को जलाती है उसे बाहर ढूढ़ रहे हो इसीलिए वह प्राप्त नहीं हो फिर भी तुझे पावक कहा जाता है, क्यों? रहा है। दर्पण में प्रतिबिम्ब दिखाई देता है पर अग्नि ने अधिक प्रज्वलित होते हए उसमें वह व्यक्ति नहीं होता वैसे ही भौतिक पदार्थों कहा-मानव जिसे पवित्र नहीं कर सकता उसे मैं में आनन्द तो दिखाई देता है पर होता नहीं। पावन बनाती हूँ इसीलिए मेरा नाम पावक है। ट्यूबलाइट का प्रकाश जगमगा रहा था। तालाब ने बहुत ही दुःखी होकर कुंए से उसने सगर्व मणि से कहा-तेरा प्रकाश बहत ही कहा-हम तो सूख चुके हैं पर तुम्हारे में अभी मन्द है पर मेरा प्रकाश कितना तेज है ! फिर भी पानी लहलहा रहा है। मेरे से तेरी अधिक कीमत क्यों? कए ने कहा- तुम्हारे में पानी बाहर से मणि ने कहा-तुम दूसरों के बलबूते पर __ आता है जबकि मेरे में पानी अन्दर से ही फूटता प्रकाश फैला रही हो, तुम्हारा स्वयं का प्रकाश है । मैं प्रदर्शन नहीं करता जबकि तुम इतना नहीं है जबकि मैं स्वयं प्रकाशित हूँ। प्रदर्शन करते हो कि देखने वाला चकित हो जाता __ दूसरों के आधार पर पनपने वाला का है। वह समझ नहीं पाता कि तुम्हारे में कितना कीमत कम ही होती है। जल भंडार है ? तुम्हारे में विस्तार है पर गहराई समाचार पत्र को पढ़ने के पश्चात पाठक नहीं। जबकि मेरे में विस्तार नहीं गहराई है। ने उसे रद्दी की टोकरी में फेंकते हुए कहा-तेरा जहां गहराई होती है वहां अगाधता होती है। जीवन कितना छोटा-सा है, पढ़ने के बाद तेरा गरजती और उफनती हुई नदियों ने समुद्र मूल्य ही नहीं। से कहा-हम इतनी सारी नदियां तुम्हारे में मिल समाचार पत्र ने कहा-रे पाठक ! सभी जायेंगी तो कोई खतरा तो नहीं होगा तुम्हें । तुओं का मूल्य समय पर ही होता है। सागर ने नदियों को स्वयं में समाहित शरबत ने पानी से कहा-चदि मैं तुझ में । करते हुए कहा-खतरा क्षुद्र को होता, है अनन्त मिल जाऊँ तो तुम्हारा मूल्य कई गुना बढ़ को नहीं। जायेगा। पीतल ने सोने से कहा-मेरा और पानी ने कहा-तुम्हारे मिलने से मेरा । तुम्हारा रंग एक सदृश है-तुम भी पीले हो तो मैं मूल्य तो बढ़ेगा पर मेरा वास्तविक स्वरूप नष्ट हो भी पीला हूँ फिर समझ में नहीं आता कि तुम्हारे जायेगा। और मेरे मूल्य में इतना अन्तर क्यों ? पास ही में बर्फ पड़ा हुआ था, उसने सोने ने कहा-जरा-सी चोट लगते ही तुम | कहा-मैं तो तुम्हारा सजातीय हूँ, मैं जब तुम्हारे में ध्वनि करने लगते हो जबकि मैं चोट सहन करके iiiiiiiii. चिन्तन के सूत्र : जीवन की गहन अनुभूति | २२५ www.jaineli + ++
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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