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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ AFFFHHIFF PHERAPR उपदेश से प्रभावित होकर श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन स्थानक के लिए २२ लाख का चन्दा भी एकत्रित हआ। गुरुदेव के साथ ही आपश्री के प्रवचन भी हुए। आपने युवकों को सम्बोधित करते हए कहा "यवक राष्ट का मेरुदण्ड है। उसकी स्वस्थता और प्रसन्नता पर ही राष्ट्र का भाग्य अवलमिव युवकों को व्यसनों से मुक्त होना चाहिए। उनकी शक्ति पारस्परिक निरर्थक वाद-विवादों में खर्च न हों वे एक जुट होकर निर्माण के कार्य में लगे तो राष्ट्र का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है ।' आपकी प्रेरणा से अनेक युवकों ने निर्व्यसन जीवन जीने की प्रतिज्ञा ग्रहण की। सूरत से आप बारडोली पधारी । जहाँ पर लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने किसानों का आन्दोलन प्रारम्भ किया था। जिस आन्दोलन ने राष्ट्र में नई जागृति का संचार किया था। आप वहाँ से बहारी पधारी । जिस गाँव के नाम के सम्बन्ध में यह किवदन्ती है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम वनवास के समय यहाँ पर आये थे, तब यहाँ मार्ग में नुकीले कांटे अधिक बिखरे हुए थे तब सीता ने अपने हाथ में हारी लेकर मार्ग साफ किया था। जिसके कारण प्रस्तुत गाँव का नाम बुहारी हआ। और उनाई के सम्बन्ध में यह वार्ता प्रचलित है कि सर्दी के दिनों में सीता सती ने यहाँ पर स्नान किया जब राम ने पूछा तो उन्होंने 'हुँ नाई' लहा वही आगे चलकर उनाई के रूप में विश्रुत हुआ। गुजरात में आप जहाँ भी पधारी वहाँ आपको सहज स्नेह के दर्शन हुए । जहाँ उन्हें मधुर भोजन प्रिय है वहाँ वे बहुत ही मधुरभाषी हैं। वहां के निवासियों में सहज ही धर्म के प्रति अनुराग है। वहीं पर मांसाहार का प्रचलन कम है। लोक जीवन सरल और सहज है उसमें क्रूरता का अभाव है। इसका मूल कारण है भगवान अरिष्टनेमि की अहिंसामूलक वाणी का दिव्य प्रभाव । महाराष्ट्र की धरती पर ___ गुजरात के पश्चात् आपने महाराष्ट्र को धरती पर चरण रखे । गगनचुम्बी पर्वतमालाओं के बीच में आदिवासियों की झोंपड़ियाँ कहीं-कहीं चमक रही थीं। यह वह रास्ता था जिसे प्राची कारण्य कहा जाता था और आज साबुतारा पहाड़ के नाम से विश्रुत है। जैन साहित्य की दृष्टि से तीर्थंकर मुनिसुव्रत युग की एक घटना है कि एक जैनाचार्य पाँच सौ मुनियों के साथ उधर पधारे । राजा का राजपुरोहित अभव्य था। आत्मा की संसिद्धि के शास्त्रार्थ में वह आचार्यदेव से पराजित हो गया। उसने उस वैर का बदला लेना चाहा। राजा से कहकर उन पाँच सौ मुनियों को धाणी में पिलवाने का आदेश दिया । आचार्यदेव ने सभी शिष्यों को समाधिपूर्वक शांत भाव से मृत्यु का वरण करने की प्रेरणा दी। अन्त में एक लधु शिष्य जिस पर आचार्य का अत्यधिक अनुराग था, उसके लिए उस पालक को कहा कि तुम पहले मुझे कोल्हू में डाल दो, मैं अपनी आँखों के सामने इस लघु शिष्य को मरते हुए नहीं देख सकता । पालक तो उन्हें कष्ट देने के लिए ही तुला हआ था। उसने पहले शिष्य को कोल्ह में डाला और उसे पील दिया। अपने शिष्य को इस प्रकार मरते हुए देखकर आचार्य देव का खून खौल उठा, उन्होंने उसी समय प्रतिज्ञा की कि मेरे तप का प्रभाव हो तो मैं इस दृष्ट राजा कोसा सबक सिखाऊँ जो सदा-सदा याद करता रहे। क्रोधावेश में आचार्य ने आयु पूर्ण किया और उनका जीव अग्निकुमार देव बना। उसने क्रोध के वशीभूत होकर उस नगर को नष्ट कर दिया। दण्ड देने के कारण और नगर नष्ट हो जाने के कारण वह दण्डकारण्य के नाम से जाना-पहचाना जाने लगा। मर्यादा पुरुषोत्तम राम भ० मुनिसुव्रत के युग में ही हुए थे वे इसी रास्ते से नासिक यानी पंचवटी में आये थे। सर्पणखा की नासिका काटने से नासिक के नाम से आज लोग जानते हैं। वहीं पर पंचवटी में से महासती सीता का अपहरण हुआ था । चरित्रनायिका ने सभी स्थानों को अपनी पैनी दृष्टि से निहारा । स्थान-स्थान पर अनेक किवदन्तियाँ भी उन्हें सुनने को मिली। एक बूद : जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १६६ . ..... PROGRSannal
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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