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________________ muicा पुष्पaal आभनन्दन गन्थ नासिक में उपाध्याय श्री विशालमुनिजी, सलाहकार श्री सुमनमुनिजो, तपस्वी श्री मोहनमुनिजी तथा पंजाब से पधारी हुई महासती अर्चनाजी, पुनीतज्योतिजी, कृष्णाजी आदि का मिलन हुआ। कुछ दिन वहाँ रुककर सिन्नर, संगमनेर होते हुए आप पूना पधारों । जहाँ सन्त सम्मेलन की उल्लास के क्षणों में तैयारी चल रही थी। आचार्य सम्राट तथा अन्य अनेक सन्तों के व महासती वृन्द के दर्शन कर हृदय आनन्द विभोर हो उठा। सन्त-सम्मेलन दिनांक ३०-४-८७ को नव्य भव्य जुलूस के साथ सभी सन्त-सतीगण आचार्यश्री के साथ महाराष्ट्र मण्डल में पधारे, और वहीं विराट सभा का आयोजन हुआ। सभी सन्त और सती वृन्द ने सम्मेलन की महत्ता पर प्रकाश डाला और मन में यह दृढ़ संकल्प किया कि हमें प्रस्तुत सम्मेलन को पूर्ण यशस्वी बनाना है। दिनांक १-५-८७ को भगवान आदिनाथ का पारणा दिवस अक्षय तृतीया थी। इस सुनहरे अवसर पर भारत के विविध अंचलों से आये हुए २५० भाई और बहिनों ने आचार्य प्रवर के नेतृत्व में पारणे किये। दिनांक २ मई से १० मई तक प्रातः और मध्याह्न में सन्त सम्मेलन की मीटिंगें चलती थीं। इन मीटिंगों में सतियों को भी मीटिंग में बैठने का और अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया । महासती पुष्पवतीजी भी प्रतिनिधि के रूप में इस सम्मेलन में उपस्थित हुई, और समय-समय पर उन्होंने अपने मौलिक विचार भी प्रस्तुत किए । इस सम्मेलन की यह विशेषता रही कि जो भी प्रस्ताव पारित हए वे सभी सर्वानुमति से हुए। दिनांक १२ मई ८७ को विराट सभा में आचार्य प्रवर श्री आनन्दऋषिजी म० ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में श्री देवेन्द्रमुनिजी को उपाचार्य पद प्रदान किया । और डॉ० श्री शिवमुनिजी को युवाचार्य पद प्रदान किया। दिनांक १३ मई ८७ को जिन्हें उपाचार्य और युवाचार्य पद प्रदान किया गया था, उन दोनों मुनियों को चतुर्विध संघ के समक्ष ११ बजकर ४५ मिनट पर चद्दर प्रदान की। चद्दर महोत्सव के सुनहरे अवसर पर लगभग एक लाख व्यक्ति उपस्थित थे। उस अवसर पर आपने मंगलमय प्रवचन में कहा कि आज मेरा हृदय आनन्द विभोर है । जब उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनिजी गृहस्थाश्रम में धन्नालाल के रूप में थे। माता के धार्मिक संस्कारों के कारण इनकी अन्तरात्मा धर्म के रंग में रंगी हुई थी जिसके कारण प्रवचन सभा में मुनि वेष को धारणकर पहुँचते थे। एक बार उदयपुर में आचार्यश्री जवाहरलालजी महाराज विराज रहे थे तब हमारे दादाजी के साथ धन्नालाल प्रवचन सभा में पहंचा उस समय आचार्य प्रवर शौचादि के लिए बाहर पधारे हुए थे और दादाजी अपने स्वाध्याय में लीन थे तब धन्नालाल खेलतेखेलते आचार्य प्रवर के पट्टे पर जाकर बैठ गया। आचार्य प्रवर के प्रवचन की नकल करने लगा । जब आचार्य प्रवर ने बालक को इस प्रकार नकल करते हुए देखा तब उन्होंने गम्भीर घोष के साथ पूछा कि यह बालक किसका है ? दादाजी घबराये हुए आचार्यदेव के चरणों में गिर पड़े और कहा-यह बालक आपका ही है । क्षमा करें, नादान है। आचार्य प्रवर ने मंद मुस्कराहट के साथ कहा-यह बालक दीक्षा ले तो इंकार न करना क्योंकि इसके शारीरिक लक्षण बता रहे हैं कि यह बालक आगे चलकर साधुसंघ का आचार्य बनेगा। पूज्य श्रीलालजी म० ने जो लक्षण बताए थे वे लक्षण प्रस्तुत बालक में दृष्टिगोचर हो रहे हैं। आचार्य प्रवर की प्रस्तुत भविष्यवाणी को आज मूर्त रूप देखकर मेरा हृदय आनन्द विभोर है। HHHHHHममममम्म्म :: २०० | द्वितीय खण्ड : व्यक्तित्व दर्शन www.jainell
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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