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________________ FIFA साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ परिचय दिया । जो भी आपके सम्पर्क में आये वे आपको तेजस्वी प्रतिभा से प्रभावित हुए विना न रहे। वर्षावास सम्पन्न होने पर आप उदयपुर पधारी। महामहिम राष्ट्रसन्त आचार्य सम्राट ने पूना में सन्त न हो और उस सम्मेलन में श्रमण संघीय सभी सन्त सतियों को पधारने का आह्वान किया तो आपकी भी भव्य भावना उद्बुद्ध हुई कि मुझे सम्मेलन में पहुँचना है। दृढ़ संकल्प के साथ आपने उदयपुर से प्रस्थान किया। यह आपके जीवन की सर्वप्रथम लम्बी यात्रा थी, पर जब मन में उत्साह और उमंग का सागर ठाठे मारता है तो दुर्गम मार्ग भी सुगम बन जाता है । शूलों का मार्ग भी फूलों का बन जाता है । पूना सम्मेलन की ओर इस यात्रा में अनेक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों को निहारने का आपको अवसर मिला।। सर्वप्रथम पर्वत मालाओं से घिरे हुए केसरियाजी को आपने देखा। यह जैनियों का एक चमत्कारी तीर्थ माना जाता है। यहां पर केसर की प्रमुखता है। इस तीर्थ के लिए श्वेताम्बरों और दिगम्बरों में लम्वे समय तक परस्पर संघर्ष चला, उच्च और उच्चतम न्यायालयों में मुकदमे चले । समाज के लाखों-करोड़ों रुपये बर्बाद हुए और आज वह स्थान शासन के अधीन है। यह है पारस्परिक फूट का परिणाम । तीर्थक्षेत्र : संस्कृति के मूर्तिमंत साक्ष्य सांवला जी और डाकोरजी इन दोनों क्षेत्रों में कृष्ण जी के विशाल-आलय हैं । जहाँ पर प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालुगण दूर-दूर से आते हैं। लसुन्दरा और उनाई इन स्थानों पर गर्म पानी के अनेक कुण्ड हैं । अनेक किंवदन्तियाँ भी उन स्थानों के साथ जुड़ गई हैं। पानी में गन्धक की प्रमुखता होने से चर्म रोगियो के लिए वह पानी बहुत हितावह बताया जाता है। बड़ौदा के पास छाणी एक छोटा सा गाँव है जहाँ पर जैनियों के ८० घर हैं। बताया जाता है कि वहाँ से १५० से भी अधिक आर्हती दीक्षाएँ हुई हैं। अनेक प्रभावक आचार्य, सन्त वहाँ से निकले हैं। बड़ौदा गायकवाड़ की राजधानी रही, जैनियों का भी वह केन्द्र रहा। गायकवाड़ सीरिजमाला में अनेक जैन ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए। वहाँ की लाइब्रेरी, म्यूजियम आदि जन-जन के आकर्षण केन्द्र रहे हैं। भरुच का नाम जैन साहित्य में अनेक स्थलों पर आता है। श्रीपाल राजा और मैनासुन्दरी का प्रसंग इस स्थान से सम्बन्धित रहा है । अनेक जैनाचार्यों ने समय-समय पर यहाँ धर्मोद्योत किया है। यहाँ पर भारत की सुप्रसिद्ध महानदी नर्मदा का प्रवाह दर्शक के मन में अभिनव चेतना का संचार करता है । क्योंकि कुछ ही दूरी पर वह अपने स्वामी समुद्र की गोद में विलीन हो गई है। नदी के इस किनारे भरुन है तो दूसरे किनारे पर अंकलेश्वर है। अंकलेश्वर में इन्डस्ट्रीयल एरिया इतना फैला है कि देखकर ताज्जुब होता है और कहा जाता है कि यह एशिया का सबसे बड़ा इन्डस्ट्रीयल एरिया है। इधर मुसलमानों के बड़े-बड़े गाँव हैं जो मुस्लिम युग में हिन्दुओं को परिवर्तित कर बनाये गये हैं। धर्मान्धता के कारण मानव क्या नहीं करता, इन गाँवों को देखने से स्पष्ट होता है। एक दिन में २२ लाख का चन्दा आप उग्र विहार करती हुई दिनांक ६/३/८७ को सूरत पहुँचीं। आपके पहुँचने के पूर्व ही दिनांक ३ को उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पाली का वर्षावास सम्पन्न कर समदड़ी, जालोर, सिरोही, आबू, बड़ौदा होते हुए यहाँ पधार गये थे। गुरुदेवश्री के नौ महीने के बाद दर्शन कर उनका हृदय आनन्द विभोर हो उठा । सूरत जैन नगरी रही है। वहाँ पर कपड़े का बहुत बड़ा उद्योग है। साड़ियों का तो वह केन्द्र ही है । मेवाड़ प्रान्त के श्रद्धालुओं की सैकड़ों पेढ़ियाँ वहाँ पर हैं। जिन्होंने अपने श्रम और पुरुषार्थ से पुराने ब्यापारियों को चुनौती दी है कि व्यक्ति पुरुषार्थ से हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है। उपाध्याय श्री जी के ११८ द्वितीय खण्ड , व्यक्तित्व दर्शन कसर www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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