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________________ " I m mmmmmmmmmm साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ (१) महासती सूरजकुंवरजी ___ इनकी जन्मस्थली भी उदयपुर थी और पाणिग्रहण साडोल (मेवाड़) के हनोत परिवार में हुआ था। महासतीजी के उपदेश से प्रभावित होकर आपने साधनामार्ग स्वीकार किया। आपको कितनी शिष्याएँ हुईं, यह ज्ञात नहीं । (२) महासती फूलकंवरजी आपकी जन्मस्थली भी उदयपुर थी। आंचलिया परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ। महासतीजी के पावन प्रवचनों से प्रभावित होकर श्रमणीधर्म स्वीकार किया। आपकी भी कितनी शिष्याएँ हुई, यह ज्ञात नहीं। (३) महासती हुल्लासकुंवरजी ___आपकी जन्मस्थली भी उदयपुर थी । आपका पाणिग्रहण भी उदयपुर में हरखावत परिवार में हुआ था। आपने भी महासतोजो के उपदेश से प्रभावित होकर संबम धर्म ग्रहण किया था। महासतो हुल्लासकुंवरजी बहुत विलक्षण प्रतिभा की धनी थीं। आपके उपदेश से प्रभावित होकर पाँच शिष्याएँ बनी -महासती देवकुंवरजी (जन्म कर्णपुर के पोरवाड परिवार में तथा विवाह उदयपुर पोरवाड परिवार), महासती प्यारकुंवरजी (जन्म-बाठैडा, ससुराल-डबोक), महासती पदमकंवरजी-इनका जन्म उदयपुर के सन्निकट थामला के सियार परिवार में हुआ और डबोक झगड़ावत परिवार में पाणिग्रहण हुआ। स्थाविरा विदुषी महासती सौभाग्यकुँवरजी और सेवामूर्ति महासती चतुरकुंवरजी। इनमें महासती पदमकुंवरजी की महासती कैलासकुंवरजी शिष्या हुईं। आपकी ज उदयपूर थी। आपके पिता का नाम हीरालालजी और माता का नाम इन्दिराबाई था । आपका गणेशीलालजी से पाणिग्रहण हुआ था। सं० १९६३ फाल्गुन शुक्ला दशमी के दिन देलवाड़ा में आपने दीक्षा ग्रहण की। आपकी चरित्र बाँचने की शैली बहुत ही सुन्दर थी, आपकी सेवाभावना प्रशंसनीय थी। सं० २०३२ में आपका अजमेर में संथारा सहित स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम महासती रतनकुंवरजी है। महासती हुल्लासकुंवरजी की चतुर्थ शिष्या सौभाग्यकुवर जी हैं । आपकी जन्मस्थली उदयपुर, पिता का नाम मोडीलालजी खोखावत और माता का नाम रूपाबाई था। आपश्री वर्तमान में विद्यमान । स्वभाव बहुत ही मधुर है। आपकी शिष्या हुई महासती मोहनकवरजी जिनका जन्म दरीबा (मेवाड़) में हुआ और उनका पाणिग्रहण दवोक ग्राम में हुआ। वि० सं. २००६ में आपने दीक्षा ग्रहण की और सं० २०३१ में आपका स्वर्गवास उदयपुर में हुआ । __ महासती हल्लासकुंवर जी की पांचवी शिष्या महासती चतुरकुंवरजी हैं जो बहुत ही सेवापरायण साध्वीरत्न हैं। (४) महासती रायकुंवरजी की चतुर्थ शिष्या हुकमकुँवरजी थीं। उनकी सात शिष्याएं हुईंमहासती भूरकुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के कविता ग्राम में हुआ। आपको थोकड़े साहित्य का बहुत ही अच्छा परिज्ञान था। पचहत्तर वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम महासती प्रतापकुंवरजी था, जो प्रकृति से भद्र थीं। लखावली के भण्डारी १५२ | द्वितीय खण्ड : व्यक्तित्व दर्शन www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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