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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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वोरांगना हूँ । स्वीकृत संकल्प से पीछे हटने वाली नहीं हूँ । अन्त में संथारा ग्रहण किया और गौतम प्रतिपदा के दिन निश्चित समय पर उनका स्वर्गवास हुआ।
शास्त्रार्थ विजयी-लहरकुंवर जी महासती लहरकुंवरजी का जन्म उदयपुर राज्य के सलोदा ग्राम में हुआ और आपका पाणिग्रहण भी सलोदा में हुआ। किन्तु लघुवय में ही पति का देहांत हो जाने से महासती श्री आनन्दकुंवरजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आगम साहित्य का अच्छा अभ्यास किया। एक बार
राग्राम में श्वेताम्बर मूतिपूजक और तेरापंथ को सतियों के साथ आपका शास्त्रार्थ हआ। आपने अपने अकाट्य तर्कों से उन्हें परास्त कर दिया। आपकी प्रकृति बहुत ही सरल थी। आपकी वाणी में मिश्री सा माधुर्य था। सं० २००७ में आपका वर्षावास यशवंतगढ (मेवाड) में था। शरीर में व्याधि उत्पन्न हई और संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी दो शिष्यायें हुई-महासती सज्जनकुंवरजी और महासती कंचनकुंवर जी।
महासती सज्जनकुंवरजी का जन्म उदयपुर राज्य के तिरपाल ग्राम के बंबोरी परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम भैरूलाल जी और माता का नाम रंगूबाई था। १३ वर्ष की अवस्था में आपका पाणिग्रहण कमोल के ताराचन्दजी जोशी के साथ सम्पन्न हुआ। आपका गृहस्थाश्रम का नाम जमनाबाई था। सोलह वर्ष की उम्र में पति का देहान्त होने पर विदुषी महासती आनन्दकुँवरजी के उपदेश से सं० १९७६ में दीक्षा ग्रहण की। चौपन वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन कर सं० २०३० आसोज सुदी पूर्णिमा के दिन अपका यशवन्तगढ़ में स्वर्गवास हुआ। महासती सज्जनकुंवरजी की एक शिष्या हुई जिनका नाम बालब्रह्मचारिणी विदुषी महासती कौशल्याजी है।
महासती कौशल्याजी की सात शिष्याएँ हैं-महासती विनयवतीजी, महासती हेमवतीजी, महासती दर्शनप्रभाजी महासती सुदर्शनप्रभाजी, संयमप्रभा, स्नेहप्रभा, सुलक्षणा।
महासती लहरकुंवरजी की दूसरी शिष्या महासती कंचनकुंवरजी का जन्म उदयपुर राज्य के कमोल गाँव के दोसी परिवार में हुआ। तेरह वर्ष की वय में आपका विवाह पदराडा में हुआ और चार महीने के पश्चात् ही पति के देहान्त हो जाने से लघुवय में विधवा हो गयीं। महासती श्री लहरकंवरजी के उपदेश को सुनकर दीक्षा ग्रहण की। आपका नांदेशमा ग्राम में संथारे के साथ स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या है जिनका नाम महासती वल्लभकुंवरजी हैं जो बहुत ही सेवा परायण है।
पूर्व पंक्तियों में हम बता चुके हैं कि महासती सद्दाजी की रत्नाजी, रंभाजी, नवलाजी की पाँच शिष्याएँ हुईं, उनमें से चार शिष्याओं के परिवार का परिचय दिया जा चुका है। उनकी पांचवीं शिष्या अमृताजी दुई । उनकी परम्परा में महासती श्री राय कुवरजी हुई जो महान प्रतिभासम्पन्न थीं। आपकी जन्मस्थली उदयपुर के सन्निकट कविता ग्राम में थी। आप ओसवाल तलेसरा वंश की थीं। उनके अन्य जीवनवृत्त के सम्बन्ध में मुझे विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकी है। पर यह सत्य है कि वे एक प्रतिभासम्पन्न साध्वी थीं। जिनके पवित्र उपदेशों से प्रभावित होकर अनेक शिष्याएँ बनीं। उनमें से दस शिष्याओं के नाम उपलब्ध होते हैं। अन्य शिष्याओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।
जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएं एवं सद्गुरुणी परम्परा : उपाचार्य श्री देवेन्द्र मनि १५१
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