SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ था और लगभग सत्तर वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास हुआ । महासती हुकुमकुंवर जी की दूसरी शिष्या रूपकुंवरजी थीं । आपकी जन्मस्थलो देवास (मेवाड़) थी । लोढा परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ । आपने महासती जी के पास दीक्षा ग्रहण की । वर्षों तक संयम पालन कर अन्त में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ । महासती हुकुमकुंवरजी की तृतीय शिष्या बल्लभकुँवरजी थीं । आपका जन्म उदयपुर के वाफना परिवार में हुआ था और आपका पाणिग्रहण उदयपुर के गेलडा परिवार में हुआ । अपने दीक्षा ग्रहण कर आगम शास्त्र का अच्छा अभ्यास किया । आपकी एक शिष्या हुईं जिनका नाम महासती गुलाबकुंवरजी था । आपका जन्म 'गुलुंडिया' परिवार में हुआ था और पाणिग्रहण 'वया' परिवार में हुआ था। आपको आगम व स्तोक साहित्य का सम्यक् परिज्ञान था । उदयपुर में ही संथारा सहित आप स्वर्गस्थ हुईं । महासती हुकुमकुंवर जी की चौथी शिष्या सज्जनकुंवरजी थीं । आपने उदयपुर के बाफना परिवार में जन्म लिया और दुगड़ों के वहाँ पर ससुराल थी । आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम मोहनकुंवरजी था जिनकी जन्मस्थली अलवर थी और ससुराल खण्डवा में थी । वर्षों तक संयम - साधना कर उदयपुर में आपका स्वर्गवास हुआ । महासती हुकुमकुंवरजी की पाँचवीं शिष्या छोटे राजकुंवरजी थीं । आप उदयपुर के माहेश्वरी वंश की थीं । महासती हुकुमकुंवरजी की एक शिष्या देवकुंवरजी थीं जो उदयपुर के सन्निकट कर्णपुर ग्राम की निवासिनी थीं और पोरवाड वंश की थीं और सातवीं शिष्या महासती गेंदकुंवरजी थीं । आपका जन्म उदयपुर के सन्निकट भुआना के पगारिया कुल में हुआ । चन्देसरा गाँव के बोकड़िया परिवार में आपकी ससुराल थी । आपको सैकड़ों थोकड़े कण्ठस्थ थे । आप सेवापरायण थीं । सं० २०१० में ब्यावर में आपका स्वर्गवास हुआ । व्युत्पन्न मेधाविनी - मदनकुंवरजी महाराज आपकी जन्मस्थली उदयपुर थी । आपकी प्रतिभा गजब की थी । आपने महासती जी के पास दीक्षा ग्रहण की। आपको आगम साहित्य का गम्भीर अध्ययन था और थोकड़ा साहित्य पर भी आपका पूर्ण अधिकार था । एक बार आचार्य श्री मुन्नालालजी महाराज जो आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे, उन्होंने उदयपुर के जाहिर प्रवचन सभा में महासती मदनकुंवरजी के उन्नीस प्रश्न किये थे 1 वे प्रश्न आगम ज्ञान के साथ ही प्रतिभा से सम्बन्धित थे । उन्होंने पूछा- बताइये महासतीजी सिद्ध भगवान कितना विहार करते हैं ? उत्तर में महासतीजी ने कहा -- सिद्ध भगवान सात राजु का विहार करते हैं, क्योंकि सिद्ध जो बनते हैं वे यहाँ पर बनते हैं, यहीं पर अष्ट कर्म नष्ट करते हैं और फिर कर्म नष्ट होने से वे ऊर्ध्व लोक के अग्रभाग पर अवस्थित होते हैं। क्योंकि वहाँ से आगे आकाश द्रव्य है, पर धर्मास्तिकाय नहीं । महाराजश्री ने दूसरा प्रश्न किया - साधु कितना विहार करते हैं ? उत्तर में महासती जी ने कहा-आचार्य प्रवर, साधु चौदह राजु का विहार करते हैं । केवली भगवान जिनका आयुकर्म कम होता है और जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएं एवं सद्गुरुणी परम्परा : उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि | १५३ www.ja
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy