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________________ साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ C2630C2599 59 IOCOCICIOCESSIG THEHARASHTRARHIREMIERRIHITHI स्व र के SEC610050000000RIORPISODEG0407499184904001008GOSTERESTRICC000000000000000000000000055510050004IDIDOE C2599$9999999999999999999999999999929999999999999999 20:32:0823 पूज्य पिताश्री जीवनसिंह जी से जगजीवन पाया है, पूज्य 'प्रेमदेवी' मातुश्री की प्रेमिल-छवि-छाया है । 'ओसवाल बरडिया' जैन स्थानकवासी-धर्म लिए, जग-मंगल करने को 'मंगलवार' जन्मदिन भाया है। 'विश्वसन्त सद्गुरु श्री पुष्कर मुनि' का आशीर्वाद मिला, गुरुणी 'महासती श्री सोहनकुंवरि' का पुण्य-प्रशाद मिला। 'प्रभावती' माता, भ्राता श्री देवेन्द्र मुनि' कृत्कृत्य हुए, भाग्य उदय हो गये 'उदयपुर' में दीक्षा-आह्लाद मिला। दीक्षित होकर 'महासती श्री पुष्पवती' कहलाई हैं, स्थानकवासी परम्परा ने विदुषी साध्वी पाई हैं। ज्ञान-गंभीरा, सिद्ध-साधिका, श्रमणी-संघ सुहाई हैं, भक्ति-ज्ञान और कर्मयोग का शुभ-संगम सुखदाई है। जन्म लिया 'मंगल' को, दीक्षा लेने को 'शनिवार' मिला। 'शुभ' हो चाहे 'अशुभ' सभी पर शुभ-समान अधिकार मिला। 'कृष्ण पक्ष' में जन्मी 'शुक्ल पक्ष' में दीक्षा पाई है, 'असत्' से 'सत्' तक, जग-मग-तम में ज्योतिर्मय विस्तार मिला। सुमधुर-ओजस्वी-वाणी में, चिन्तन की गहराई है। सत्य-शील - चारित्र्य - संगठन, अनुशासन - ऊँचाई है। प्रिय-पीयूष - प्रवचनों से जनसेवा-हित जन-जीवन ने, सदाचार - पथ पर बढ़ने की प्रबल-प्रेरणा पाई है। न्याय-काव्य-साहित्य-व्याकरण-दर्शन सबका मनन किया, जैन-धर्म-सिद्धान्त आदि सबका मन से अनुगमन किया। "महासती श्री पुष्पवती जी महाराज ने निष्ठा से. जन-गण-मन के अध्यापन को अधिकाधिक अध्ययन किया। शतक', 'पुञ्ज', 'प्रवचन', 'पुरुषार्थ का फल', में 'प्रभा' प्रदर्शन है, 'दसवैकालिक सत्र', 'सती का शाप', 'कल्पतरू' चिन्तन है। 'पुष्प-पराग', किनारे-किनारे', 'सुधा-सिन्धु', 'संगीत-प्रभा', 'साधना सौरभ', 'पीयूष घट', 'साहस का सम्बल' प्रकाशन है। जिनकी गुरु-गौरव-गरिमामय वाणी शुभ सुखदाई है, जिनकी सफल साधना ने साधन की राह दिखाई है। ऐसी साध्वी महासती विदुषी श्री पुष्पवती जी कीदैवयोग से दुर्लभ दीक्षा स्वर्ण जयन्ती आई है। तन निष्काम भले ही हो, मन-कर्म सकाम हमारे हैं, गति अवरुद्ध भले ही हो, पर पग अविराम हमारे हैं। जिनके जीवन की पावनता पुष्प-पराग बखेर रही, उनके श्री चरणों में सादर नम्र प्रणाम हमारे हैं। -कवि सम्राट निर्भय हाथरसी (हाथरस) ना అందం చందం కుదిరించిందంట అందించడం జరిగిందించిందించింది 6 1005000CCCC055813641454810088054505665009CCESSOSISCCCIDCORICICICIETSIDEOCIDIOEMEDICICICIENCE व न्द L IT A RAMERA वन्दना के स्वर | १२७ www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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