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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ प्रम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्H न म न ! -ज्ञाज भारिल्ल वीतराग भगवन्त-कृपा से सब शुभ हो, 'पुष्पवती' ऐसी सन्नारी, साध्वी की, सब जीवों को सदाकाल सुख-शान्ति मिले। महासती की होती है जयकार सदा । विघ्न दूर हों, मंगलमय जीवन-पथ हो, हाथ जोड़कर नतमस्तक होता है जग, जिनशासन का सुन्दर शतदल कमल खिले ।। और मानता है उनका उपकार सदा ।। पहिले तो मानव-जीवन ही दुर्लभ है, मैं क्या हूँ ? कवि ? नहीं, अल्पज्ञानी हूँ मैं, फिर उत्तम कुल में यदि जन्म मिले तो क्या। मेरे पास कहाँ हैं शब्द कि कुछ गाऊँ ? उत्तम कुल पाकर सत्संग-साधना हो, परम तपस्विनि, महासती के अर्चन हित, माता-पिता सुसंस्कृत हो, तब भाग्य जगा । भावों के शुभ सुमन कहाँ से मैं लाऊँ ? मानव, जीवन पाते हैं, मर जाते हैं, जो कुछ लाए थे वह भी खो जाते हैं। सूरज को दीपक कैसे दिखलाऊँगा? अगिन गुणों का गान कहां कर पाऊँगा? ऐसे जो मानव हैं वही अभागे हैं, उनका ज्ञान अगाध, तपस्या हिमगिरि-सी, अपने पथ में खुद कंटक बो जाते हैं। मैं तो सीढ़ी एक नहीं चढ़ पाऊँगा। स्वमिण अवसर होता है मानव-जीवन, दूर-दूर से दर्शन इसका सदुपयोग करना है मानवता । ही कर सकता हूँ, इसे व्यर्थ जाने अपना मानव-जन्म धन्य कर सकता हूँ। देना है कायरता, उनके परम तपोमय जीवन के अक्षय, इसका दुरुपयोग करना है दानवता ॥ पुण्य-कोष से यह झोली भर सकता हूँ। जो हैं वीर, विवेकी, वे आगे बढ़ते, इतना भी तो मेरा पुण्योदय ही है, अपने साथ अन्य को भी ले चलते हैं। उनका दर्शन मुझे सुधामय करता है। अंधकारमय काली अमा-निशा में वे, जलते हुए पापमय मेरे अन्तर को, पुण्य-प्रकाशित पंथ-दीप-से जलते हैं। उनका स्मरण शान्ति के जल से भरता है । सतत प्रवाहित काल कभी रोके न रुका, महासती चारित्र्य-शिखर पर स्थित हैं जो, बहती जाती है अविराम समय-धारा। उनका दर्शन मुझे 'इन्द्र' ने करवाया। इस धारा में कभी-कभी खिल आता है, मुनिवर वे 'देवेन्द्र' पूज्य हैं उतने ही, कोई पावन कमल पुष्प सुन्दर, प्यारा ॥ कृपाभाव से मुझे जिन्होंने अपनाया ।। ऐसे मुनिवर को मेरा सादर वन्दन ! ऐसी महासती को शत-शत बार नमन ! उनके श्री चरणों में रहूँ अवस्थित मैं, उनकी साक्षी में बीते मेरा जीवन ।। HHHHHHHHHHHHHHHHHHiffiHitHmmitTihirmiti १२८ | प्रथम खण्ड : शुभ कामना : अभिनन्दन www.jainel
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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