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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ शब्दों की ध्वनि से चमत्कृत अर्थ और रसीली निन्दन्तु केऽपि मुनयो यदि वा स्तुवन्तु, सुन्दर भावों की पद्यावलि को रचने के लिए क्या सत्योऽप्यमूः किमपि वा कययेयुरेताम् । वानर आयेंगे ? १४६। पुष्पश्रियं भवतु तां कमनीय कान्तिम् , सत्या गुणेषु नियतास्त्रुटयो भवेयुः दान्तां नमामि निरतं सुतरां स्तवीमि ॥४८॥ भावेष्वपीह मम वाशयबोधकेषु । यदि कोई भी मुनिजन निन्दा करें या प्रशंसा दोषाश्चतेऽपि बहवः कृपया सुधीभिः, करें या ये सतियाँ भी इनको कुछ भी कहा करें, जो क्षम्या भवेयुरधमो दयनीय एव ॥४७॥ भी हो, हुआ करे किन्तु उन जितेन्द्रिय स्वभाव सुन्दर भगवती पुष्पवतीजी सतीजी के गुणों में त्रुटियाँ पुष्पश्री सतीजी को सदा नमन करता हूँ और अच्छी अवश्य होयेंगी। और मेरे भी यहाँ आशयबोधक तरह प्रशंसा करता हूँ।४८॥ विचारों में दोष, वे भी बहुत होयेंगे, वे सुधीजनों अयं रमाशङ्करनामकः कविः से कृपया क्षम्य होयेंगे । क्योंकि अधम दयनीय ही दधाति पद्याञ्जलिमात्मनिर्भरम । होता है ।४७। समादरे ग्रन्थमयेऽभिनन्दने विराजतां सौरभमावहन्नहो ॥४६॥ [लिपिकार की लिखावट बहुत ही अस्पष्ट तथा त्रुटिपूर्ण होने के कारण यदि उक्त पद्यावली एवं हिन्दी अनुवाद में अशुद्धि दोष दृष्टिगत हो तो पाठक क्षमा करें। -सम्पादक EelOnaos २६ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन hatic www.jainte
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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