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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ || . . . . . . . . शान्ति प्राप्त नहीं हो रही है। पर सन्त-सतियों का चकित होते हैं । मैंने यह भी अनुभव किया है। पहले सान्निध्य जब हमें मिलता है, तो बौद्धिक विकास के मुझे जब क्रोध अधिक आता था, उसके पश्चात् मैं साथ ही हमारा आध्यात्मिक विकास भी होता है। निढाल हो जाता था। पर आज स्फूत्ति और चेतना और हम स्व केन्द्रित होते हैं । जब स्व-केन्द्रित होते रहती है। मेरे परिवार वाले भी सुखी हैं तो मुझे । हैं तो सहज ही सुख की अनुभूति होती है । यह सबसे भी अपूर्व आह्लाद है। । बड़ा लाभ है। ____ दीक्षा स्वर्ण जयन्ती की पावन बेला में मैं अपनी मुझे यह लिखते हुए अपार हर्ष है कि महासती ओर से अपने पारिवारिकजनों की ओर से महासती | जी के सम्पर्क में आने के पश्चात् मेरे स्वभाव में पुष्पवतीजी के चरणों में अपना श्रद्धा सुमन समर्पित बहुत कुछ परिवर्तन हुआ है । पहले मैं बात-बात में करते हुए, अपार प्रसन्नता है। हमारी यही मंगल क्रोध करता था, आपे से बाहर हो जाता था पर अब कामना है। आप पूर्ण स्वस्थ रहकर हमें सदा मार्ग । वह स्थिति नहीं है। कई बार क्रोध के प्रसंग समुप- दर्शन प्रदान करती रहें। स्थित होने पर भी जब मैं शान्त रहता हूँ तो पारिवारिक जन मेरे स्वभाव के परिवर्तन को देखकर . . . . . . . . चुम्बकीय आकर्षण -रणजीत सिंह लोढ़ा --(अजमेर) परमविदुषी साध्वीरत्न पुष्पवतीजी का जीवन अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगी। बिना मन के भी अनेक विशेषताएँ लिये हुए हैं। मैंने उनके दर्शन हमें दर्शन के लिए पहुंचना पड़ा। सर्व प्रथम मदनगंज में किये। कुछ व्यावसायिक हम मदनगंज-किशनगढ़ पहुंचे। गुरुदेव श्री प्रवृत्तियों के कारण सन्त-सतियों की सेवा में का जादूई चुम्बकीय आकर्षण से हम प्रभावित हुए। पहुंचना नहीं हो पाता। अजमेर में हम वर्षों से हमें अनुभव हुआ कि हमने इतना समय यों ही रह रहे हैं। वहाँ पर सन्त और सतियों का निरर्थक खो दिया। मन में पश्चात्ताप होने लगा। आगमन भी होता रहता है। और वर्षावास भी हमने अपनी धर्मपत्नी को धन्यवाद दिया। यदि प्रायः होते रहते हैं। पर हम दोनों भाई बहत कम तुम सत्याग्रह नहीं करती तो हम ऐसे महापुरुषों जाते हैं। पता नहीं ऐसी क्या एलर्जी हो गई है कि के दर्शन से वंचित रहते। अब तो बिना प्रेरणा के स्थानक जाने का मुड़ ही नहीं होता। सन् १९८३ में ही दर्शन हेतु पहुंचने लगे। उस समय गुरुदेव श्री उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० का वर्षावास की सेवा में महासती पृष्पवतीजी विराज रही थी। मदनगंज में हुआ। हमारे भोजाईजी और मेरी उनके दर्शनों का भी हमें सोभाग्य मिला। उनका धर्मपत्नी गुरुदेव श्री की सेवा में पहुंची। उनके सरल मानस, प्रेम पूर्ण सद्व्यवहार से हमारा अद्भुत व्यक्तित्व से प्रभावित हुई। उन्होंने हमें अन्तर्हृदय गद्गद् हो उठा। गुरुदेवश्री तो मदनप्रेरणा दी कि आप एक बार अवश्य ही गुरुदेव के गंज से विहार कर देहली पधार गए। दर्शन करें। हम उनकी बातों को टालते रहे। पर गुरुदेव श्री के वर्षावास दिल्ली में हुए। महासती एक दिन मेरी धर्मपत्नी ने सत्याग्रह कर लिया। जी स्थविरा महासती श्री चत्तर कुंवर जी म० की जब तक आप नहीं चलेंगे-दर्शन हेतु तब तक मैं वृद्धावस्था के कारण लम्बे विहार करने की स्थिति १८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन waternation www.jair ...
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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