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________________ साध्वारत्न पुष्पवता अभिनन्दन ग्रन्थ में नहीं थी । अतः उन्होंने एक वर्ष किशनगढ़ में और द्वितीय वर्ष हरमाड़ा में वर्षावास किया । इन दोनों वर्षावास में तथा शेष काल में हम जब भी अवकाश मिलता ! सपरिवार गाड़ी लेकर दर्शनार्थ पहुंच जाते । तथा महासती जी के सानिध्य में बैठ कर अपार आनन्द का अनुभव होता । महासतीजी के निकट सम्पर्क में आकर हमारे जोवन में धार्मिक रुचि जाग्रत हुई । गुरुदेव ने धार्मिक संस्कारों के वीज का वपन किया तो महासती जी ने उस बीज का सिंचन कर उसकी अभिवृद्धि की । महासती जी के निकट सम्पर्क से हमारे जीवन में धर्म की भावना लहलहाने लगी है । उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी महासतीजी के लघु भ्राता है । उन्होंने यह बताया कि महासतीजी की दीक्षा स्वर्ण जयन्ती आ रही है और इस अवसर पर पत्रम् पुष्पम् के रूप में महासतीजी को एक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने की भावना उबुद्ध हुई है। हमने निवेदन किया कि हमारे योग्य जो भी सेवा हो वह बिना संकोच बताने की कृपा करें | हमारा परम सौभाग्य है कि हमें इस पावन प्रसंग पर अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करने का अवसर मिला है । हम यह साधिकार कह सकते हैं कि हमने अन्य महासतीजी के भी दर्शन किये हैं पर जो विशेषता और शान्ति महासती पुष्पवती जी में देखी है । वह अद्भुत है, अनूठी है । इसीलिए हमारा हृदय उनके चरणों में नत है । अपनी ओर से और अपने पूरे परिवार की ओर से श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए आनन्द विभोर हो रहा हूँ । पुष्प सूक्ति कलियां मिथ्याभाषण और मिथ्याचार से शरीर और मन दोनों पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है । शासन प्रभाविका -- धनराज चुन्नीलाल बाँठिया, पूजा जैन साहित्य का जब हम पर्यवेक्षण करते हैं तो हमें सहज ही परिज्ञात होता है कि जैन श्रमणियों का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है । वे धर्म की नींव के रूप में रही हैं । हर तीर्थंकर के शासनकाल में श्रमणों की अपेक्षा श्रमणियां अधिक रही हैं । उनका तपःपूत जीवन जन-जन के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है । अन्तकृतदशांगसूत्र इस बात का साक्ष्य है । जब हम उन श्रमणियों के तप का वर्णन पढ़ते हैं, तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं । वे महारानियाँ जो एक दिन भोग के दल-दल में फँसी हुई थीं जब त्याग - मार्ग को स्वीकार करती है, तो उनके कदम वीरांगना की तरह निरन्तर आगे बढ़ते रहते कि हैं। उनके तप का वर्णन पढ़कर ऐसा लगता श्रमणों के कदम भी उनसे तप में पीछे रहे हैं । तप में ही नहीं, जप, ध्यान, स्वाध्याय और बौद्धिक शक्ति में भी वे सदा आगे रही हैं । I वासी जैन समाज की एक प्रतिभा सम्पन्न साध्वी परम विदुषी साध्वीरत्न पुष्पवतीजी स्थानक - हैं । उनमें प्रतिभा की तेजस्विता है, चिन्तन की गहराई है। जो प्रथम दर्शन में ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं । परम श्रद्धय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज साहब का वर्षावास सन् १६८० में उदयपुर था । हम सपरिवार गुरुदेव श्री के दर्शन हेतु उदयपुर पहुँचे । हमने पूना में ही गुरुदेवश्री के चातुर्मास में यह सुन रखा था कि उपाचार्य देवेन्द्र मुनिजी की माताजी और बहिनजी ने भी दीक्षा ले रखी है और वे बहुत ही ज्ञानी है । जब हमें यह ज्ञात हुआ कि उनका वर्षावास भी उदयपुर में ही है तो हमारा मन उनके दर्शनों के लिए ललक उठा । हमने सर्व प्रथम माताजी महाराजश्री प्रभावतीजी के दर्शन किये । उनकी सौम्य और भव्य मुखाकृति को शासन प्रभावित &c www.jainelin
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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