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साध्वारनपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
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कुंवरजी म. जो महान त्यागी थी। उनके कण-कण ही हृदयंगम हो जाता है। इसका मूल कारण है कि में, मन के अणु-अणु में संयम-साधना रमी हुई थी। उनका अध्ययन गम्भीर है, चिन्तन बहुत ही उनका जीवन साधना का जीवित भाष्य था। कहाँ स्पष्ट है। है आज उनके जैसी साध्वियाँ ? उनकी गुरु बहिन उनके जीवन में हजारों गुण हैं। उनका जीवन महासती मदनकुंवरजी का जीवन भी तप और गुणों का आगार है । आप सागर वर गम्भीरा हैं, त्याग का ही रूप था। मेरी माताजी महासतीश्री गुणियों का अभिनन्दन करना हमारी अपनी पुरानी प्रभावतीजी भी एक प्रबुद्ध साधिका थी। उन सभी परम्परा रही है। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात के संस्कारों का ही यह सूफल है।
है कि महासतीजी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित ___महासती पुष्पवतीजी के सामने जब कभी भी हो रहा है । उस ग्र-थ के माध्यम से हमें भी अपने मैंने जिज्ञासा प्रस्तुत की तब वे उन जिज्ञासाओं का श्रद्धा-सुमन समर्पित करने का सुनहरा अवसर बहुत ही शान्ति के साथ समाधान प्रदान करती मिला है। हम अपने अनन्त आस्था के सुमन हैं । समाधान करने का उनका तरीका बहुत ही समर्पित कर अपने आपको धन्य-धन्य अनुभव कर सुहावना है । विषय के तलछट तक पहुँचकर ऐसा रहे हैं । स्पष्टीकरण करती हैं कि सुनने वाले को विषय सहज जन-जन का आकर्षण केन्द्र
-महेन्द्र कुमार लोढ़ा, अजमेर परम पूज्य साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी इस आपने गम्भीर अध्ययन किया। विविध विषयों के युग की महान साधिका एवं सन्त व्यक्तित्व की धनी शताधिक ग्रन्थों का आलोड़न विलोड़न कर हैं । सुन्दर रूप और सुन्दर स्वभाव के कारण माता- चिन्तन का नवनीत और अनुभव का अमृत जन-जन पिता ने उनका नाम सुन्दर कुमारी रखा। वे अपने को प्रदान कर रही हैं। अद्भुत है आपकी प्रवचन मधुर व्यवहार से करुण, कोमल मानस तथा अद्भुत कला, विलक्षण है आपका विश्लेषण । एक बार भी प्रतिभा की विलक्षणता से पारिवारिकजनों की आक- जिसने आपके प्रवचन-पीयूष का पान कर लिया। र्षण केन्द्र बन गई । माता प्रेमकुँवर का प्रेम और वह अपने जीवन को धन्य-धन्य अनुभव करने पिता जीवनसिंहजी की जीवन कला उन्हें विरासत लगता है। में प्राप्त हुई थी। सौन्दर्य के साथ सरलता, रूप के प्राचीन मनीषियों ने कहा कि भाग्य से ही महासाथ माधुर्य का विरल संयोग उनके जीवन में अप्र- पुरुषों का सान्निध्य प्राप्त होता है, एक क्षण की भी तिम व्यक्तित्व प्रदान कर सका था। उनके चेहरे पर संगति जीवन में आमूल-चल परिवर्तन कर देती है। मैं गर्व के स्थान पर सारल्य और विनय का माधुर्य भी महासतीजी के सम्पर्क में आया, उनके पावन भाव झलक रहा था।
प्रवचनों को सुनें । जिसके फलस्वरूप मेरे अन्तर् बाल्यकाल में ही उन्होंने साधना पथ को स्वी- मानस में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ। यह है महासती कार करने के लिये दृढ़ संकल्प किया। अनेक बाधाओं जी के सान्निध्य का लाभ । मैं चिंतन के क्षणों में से जुझती हुई सिंहनी की भांति वे निरन्तर आगे सोचता हूँ कि आज हमारा बौद्धिक विकास अत्यधिक बढ़ती रही । और उन्होंने १३ वर्ष की लघुवय में हो रहा है । बौद्धिक विकास से हमारे में तर्क शक्ति आहती दीक्षा ग्रहणकर अपने सुदृढ़ संकल्प को पूर्ण प्रबल हो रही है। किन्तु जीवन में शान्ति का अभाव किया। दीक्षा के पश्चात् आपकी शिक्षा प्रारम्भ हई है। हम बाहर शान्ति की अन्वेषणा कर रहे हैं, पर
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