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________________ साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ जि न शा स न की गरिमा । श्री संचालालजी बाफणा (अध्यक्ष : अ. भा. श्वे. स्थानकवासी जैन कान्फ्रेस, दिल्ली) श्रमण संस्कृति विश्व की एक महान संस्कृति है। इस संस्कृति में व्यक्ति को नहीं, गुणों को महत्त्व दिया है । व्यक्ति की महत्ता गुणों पर आधृत है, यही कारण है कि श्रमण और श्रमणियों को भी गुणों के कारण महत्ता प्रदान की गई है । गुणों के कारण ही श्रमण व श्रमणियाँ महान बनती है । साधक का एक विशेषण है, 'गुणानुरागी' । साधक गुणी व्यक्तियों के प्रति अनुरक्त रहता है। वह गुणियों की वन्दना, अभिनन्दना करने में अपने आपको धन्य अनुभव करता है। अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने की एक मंगलमय परम्परा इन वर्षों में चल रही है। उस परम्परा का भी यही उद्देश्य है कि जिन सन्त और सती वृन्द का हमारे समाज पर महान उपकार है,उनसे उपकृत होने के लिए वन्दना, अभिनन्दना और स्तवना की जाती है। परम विदुषी साध्वी रत्न महासती पुष्पवतीजी श्रमण संघ की एक तेजस्वी साध्वी हैं। जहाँ . तक मुझे ज्ञात है वहाँ वे सर्व प्रथम साध्वी हैं जिन्होंने क्वीस कालेज वाराणसी की, और कलकत्ता व प्रयाग की हिन्दी, संस्कृत की उच्चतम परीक्षाएँ समुत्तीर्ण की। आज युग बदल चुका है। आज अनेकों साध्वियों ने विश्वविद्यालयों की उच्चतम परीक्षाएँ समुत्तीर्ण की हैं और शोध प्रबन्ध लिखकर पी.एच.डी. की उपाधि भी प्राप्त की है। पर वह युग था कि जिस युग में श्रमण और श्रमणियों को गृहस्थ विद्वानों से पढ़ने का निषेध था। जिस युग में भयंकर विरोध के बावजूद भी राजस्थान की धरती में रहकर उन्होंने अध्ययन किया और परीक्षाएं समुत्तीर्ण की। पाश्चात्य विचारक बेकन ने सत्य ही लिखा है "रीडिंग मेक्स ए फुल मैन स्पीकिंग ए परफैक्ट मैन राइटिंग ए एग्जैक्ट मैन" अध्ययन मानव को पूर्ण बनाता है, भाषण उसे परिपूर्णता देता है। और लेखन उसे प्रामाणिक बनाता है । जब ये तीनों बातें क्रमशः होती हैं तब उसमें परिपूर्णता आती है। पहले अध्ययन, फिर भाषण और उसके पश्चात् लेखन । जो व्यक्ति बिना अध्ययन लिखते हैं, उनकी लेखनी मे परिपूर्णता नहीं आती। आजकल कितने ही लेखक एक-दूसरे की प्रतिस्पर्धा में लिखते हैं, पर उनकी लेखनी में कोई चमत्कार नहीं होता, न मौलिक चिन्तन होता है, न कमनीय कल्पना की उड़ान होती है। वही घीसी-पिटी बातें होती हैं पर महासतीजी के साहित्य को मैंने पढ़ा, उसमें विचारों का अजस्र स्रोत प्रवाहित है। भाव भाषा और शैली का ऐसा सुमेल है कि पढ़ते-पढ़ते पाठक झूमने लगता है। पुष्प-पराग महासतीजी के प्रवचनों का ६८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन irani ... ... Smsanmatopati
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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