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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ) Dines...... एक शानदार संकलन है। व्रतों पर महासतीजी ने जो विश्लेषण किया है वह बहुत ही अनुठा है और प्रेरणादायी है । आज इसी प्रकार के प्रेरणाप्रद साहित्य की आवश्यकता है। ___मैंने महा सतीजी के द्वारा लिखित उपन्यास भी पढ़े हैं “सती का शाप" "किनारे-किनारे" और "कंचन और कसौटी" आदि उपन्यास क्या है, एक जीवन्त प्रेरणा है । आज नारी का विकृत रूप प्रस्तुत किया जा रहा है। "सती के शाप" में भारतीय नारी का एक तेजस्वी रूप उजागर हआ है। अ किनारे' उपन्यास में दहेज के दावानल पर तीखा व्यंग्य है, एक करारी चोट है । प्राचीन युग में यह परम्परा कितनी विशुद्ध थी, पर आज वह कितनी विकृत हो गई है ? इसका सटीक वर्णन है, समाधान है। मैंने महासतीजी द्वारा सम्पादित दश वैकालिक सूत्र देखा इस आगम पर जो महासतीजी ने 4 अनेक आगमों के आलोक में विवेचन लिखा है वह विवेचन बहुत ही सुन्दर और सरस है । आगम साहित्य पर विवेचन लिखना टेढ़ी खीर है। हर व्यक्ति उस पर विवेचन नहीं लिख सकता। जिनका अध्ययन गम्भीर है, तुलनात्मक दृष्टि से आगम धर्म और दर्शन का जिन्होंने अध्ययन किया है ?वे ही इस प्रकार का विवेचन लिखने में सक्षम हो सकते हैं। महासतीजी ने प्रत्येक पद पर चिन्तनपूर्वक विवेचन लिखा है। ऐसी परम विदुषी साध्वीरत्न ने अपने जीवन को साधना की आग में तपाया है । बेदाग जीवन जीकर ऐसी मशाल पेश की है, जो सभी के लिए प्रेरणादायी है। आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हमारे यहाँ पर भी भौतिकवाद की आँधी आ रही है । तप-त्याग और समर्पण की ज्वलंत प्रतिमाएँ, महिलाएँ भौतिकवाद के प्रवाह में प्रवाहित हो रही है । सीने जगत की तारिकाएँ बनने के लिए ललक | रही हैं । ऐसे समय में हमारे संस्कृति की गौरव-गरिमा रूप ये साध्वियाँ आलोक स्तंभ की तरह है। इनका जीवन पवित्र है, इनके विचार निर्मल हैं और इनका आचार विशुद्ध है। मैं ऐसी तपःमूर्ति साध्वी का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ । इनका जीवन युग-युग तक हमें प्रकाश प्रदान करता रहेगा। BHARATHHHH कृतवन्ततःलालकृतवनकनकलतुलन्दकालदकतनजनकलवाककृत लकदकन्ददायलनकरक रुकन्यता बो ल ता हु आ भा ष्य श्री रतनचंद रांका (सिकन्दराबाद) 2deodesihde.bie.ke.be.ke.ke.ka.le.ke.dese.sevisebabei.ke.kepdealevisdesiabaleseddesesesesedesbdesesexbesesesejeseaksisesesedseasesosddessessedesbsecotosed ___ भारत के एक तत्त्वदर्शी मनीषी ने लिखा है--- भी ज्ञानी के सम्पर्क में आता है, उसके जीवन में "सहस्रषु च पण्डितः” हजारों व्यक्तियों में एकाध अभिनव रोशनी जग-मगाने लगती है। व्यक्ति पंडित होता है पर ज्ञानी तो लाखों व्यक्तियों परम विदुषी महासती पुष्पवतीजी एक ज्ञानी में कोई विरला ही मिलता है । ज्ञानी और पण्डित में साध्वी हैं । ज्ञान का अथाह सागर उनके जीवन अन्तर है। पण्डित का ज्ञान मस्तिष्क की उपज है में लहलहा रहा है । उस ज्ञान के सागर को नापना और वह ज्ञान जीभ पर अठखेलियाँ करता रहता बहुत ही कठिन है। मैंने देखा है, वे समाज में फैले है। पर ज्ञानी का ज्ञान अन्तर्हृदय से उबुद्ध हए-अज्ञान-अन्धकार को नष्ट करने के लिए होता है और वह उसके जीवन में झंकृत होता है। प्रयत्नशील है। वे समाज में पनपती हुई रूढ़ियाँ, उसका जीवन एक बोलता हुआ भाष्य है । जो दुर्व्यसनों को नष्ट करने के लिए सदा संलग्न है । बोलता हआ भाष्य | ६६ www.jainell
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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