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________________ पायेंगे बालक की तरह उनमें सहज-सरलता है, शान्ति के साथ सहन करती हैं । लगता है भगवान निर्मलता है । और सहज स्वाभाविकता है। महावीर का यह संदेश "अप्पाणभयं न दसए" अपने गर्व की एक वक्र रेखा भी उनमें कहीं नहीं है, को कभी भयभीत नहीं होने दो। उनके जीवन में उनकी कृति में, आकृति में और प्रकृति में सहजता, रम गया है । वे कष्ट को सदाकसौटी मानती हैं। सरलता टपकती है। कवि के शब्दों में हम अपने वरदान मानती हैं। उनका जीवन सूत्र हैभाव इस प्रकार कह सकते हैं “दुःखेषु विगतोद्वेगः सुखेषु विगतस्पृहः ।" करते हैं कर्त्तव्य, किन्तु जरा अभिमान नहीं है, वे दुःख में उद्वेग रहित और सुख में स्पृहा मुक्त फूल खिला है पर, खिलने का मान नहीं है। हैं। चाहे उन्हें कोई गालियाँ भी दे, पर प्रत्युत्तर मे सब कुछ किया समर्पण जिसने निज जीवन को, वे एक शब्द भी नहीं बोलती । मैंने एक बार पूछा-- उनकी महिमा का होता कुछ अनुमान नहीं है । कि आप उसका प्रत्युत्तर क्यों नहीं देती। आपने महासती पुष्पवतीजी का हृदय सरस ही नहीं, सरल शब्दों में कहा---आग में घी डालने से क्या बहुत सरल है। उनके मन में कहीं पर भी घुमाव लाभ है । यदि डालना ही है तो पानी डाला जाय । नहीं है। दुराव और छिपाव भी नहीं है। जैसा हमारा तो यह सिद्धान्त है, “हम आग बुझाने वाले स में विचार है वे ही वाणी के द्वारा हैं, हम आग लगाना क्या जानें ।" हमें व्यक्त होते हैं। वे बहुत ही सीधे सरल शब्दों में आग बुझाना आता है पर आग लगाना नहीं आता अपनी बात को रखती हैं। जितने उनके भाव सरल मेरा यह अनुभव है कि महासती पुष्पवती जी हैं, उतनी ही उनकी वाणी भी सरल है। भगवान बहुत विनम्र है पर दब्बू नहीं। वे प्रत्येक व्यक्ति के महावीर ने साधक के लिए सबसे बड़ा गण बताया साथ मधुरतापूर्ण व्यवहार करती हैं। उनके चेहरे है सरलता । जो सरल आत्मा है,उसी पवित्र आत्मा पर सदा मधुर मुस्कान अठखेलियाँ करती रहती में धर्म का निवास है, सरल आत्मा ही धर्म-देवता है। वे अपनी बात सहजता से कह जाती हैं पर का मन्दिर है । जो सीधा होता है वही सिद्ध गति कोई बात माने ही, यह उनका आग्रह नहीं होता। को प्राप्त करता है । वक्र गति वाला कभी सिद्ध अपने विमल विचारों को वे किसी पर थोपना नहीं नहीं बन सकता । जहाँ सरलता है वहीं पर मधुरता चाहती। जो विचार उन्हें पसन्द है उन्हें वे सहज भी है। बिना सरलता के मधुरता टिक नहीं रूप में स्वीकार कर लेती हैं। पर जो विचार उन्हें सकती । एतदर्थ ही कवि रसखान ने लिखा है- स्वयं को पसन्द नहीं है वे विचार किसी के दबाव प्रीति सीखिए ईखते, पोर-पोर रसखान । से भी स्वीकार नहीं करती। उन्हें सत्य से प्यार है। जहाँ गाँठ तहं रस नहीं, यही नीति की बान ॥ अध्ययन की दृष्टि से महासती पुष्पवती जी यदि श्रमण और श्रमणियाँ सरल नहीं है । वे बहुत ही जागरूक रही हैं उन्होंने संस्कृत-प्राकृत का सही दृष्टि से श्रमण और श्रमणियाँ भी नहीं है। गहराई से अध्ययन किया है। उन्होंने सिद्धान्त मुझे साध्वीरत्न महासती पुष्पवतीजी के मन की, कौमुदी जैसे नीरस विषय को भी हृदयंगम कर वचन की सहज व सरलता देखकर आश्चर्य होता परीक्षाएँ दी और प्रथम श्रेणी में समुत्तीर्ण हुई । है और अपार श्रद्धा उमड पड़ती है। धर्म, दर्शन आगम का गम्भीर अध्ययन किया । महासतीजी का जन्म वीर भूमि राजस्थान में भाषा, ज्ञान और आगम का ज्ञान आपका तलस्पर्शी हुआ। वे वीरांगना है, जैसे वीर क्षत्रिय युद्ध के है । नगाड़े सुनकर घबराता नहीं अपितु उसकी भुजाएँ अध्ययन के साथ ही आप में कला के प्रति भी फड़कने लगती हैं। वैसे ही महासती जी परीषहों रुचि है। आपके अक्षर बहुत ही सुन्दर हैं। आप को देखकर भयभीत नहीं होती। वे परीषहों को वस्त्रों की सिलाई बहुत ही बढ़िया करती है ? और शत-शत वन्दन : अभिनन्दन | ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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