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________________ 909594000049993298686090093929 CIDC9E98694149404349404907 जा रही हैं इस अवसर पर अभिनन्दन ग्रन्थ समपित युग-युग जीवो मेरे गरुणी जी करने का जो निश्चय किया गया है वह स्तत्य है। __मैं यह हार्दिक मंगल कामना करती हूँ कि युग-युग -महासती हर्षप्रभा जी आप जीवें और पूर्ण स्वस्थ रहकर खूब विचरण ___करें और हमें हार्दिक आशीर्वाद प्रदान करें जिससे GEETOPAEDIEDERACEBIEBEDEO BEEGSEBCAMBEDICIPSCDCSCGCRICORDISIONE हम निर्विघ्न संयम साधना करती हई आगे बढती "हे निर्भयता के परम उपासक । रहें। हो शत-शत वन्दन-अभिनन्दन ।” परम विदुषी साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी म. का व्यक्तित्व बड़ा ही दिलचस्प और विलक्षण है । वे प्रखर चिन्तक, प्रभावी व्याख्याता प्रबल संगठक और विशिष्ट साधनारत महासती हैं । जहाँ आप सुदीर्घ ছান-হান হল: ওঠিনতনে साधनामय जीवन में आत्म-कल्याण की ओर रही हैं, वहाँ जन कल्याण की ओर भी सदैव सचेष्ट -महासती प्रीतिसधा जी रही हैं। सरलता के साथ भव्यता, विनम्रता के साथ दृढ़ता, ज्ञान ध्यान के साथ प्रशासनिक क्षमता श्रमण भगवान महावीर ने एक बार जीवन आप के व्यक्तित्व की विरल विशेषताएं हैं, आपके का विश्लेषण करते हुए कहा कि इस विराट विश्व व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण है जिससे व्यक्ति में अनेक प्रकार के व्यक्ति हैं। कितने ही व्यक्ति सहज रूप से आपकी ओर खींचा चला जाता है। सेवा, तप-त्याग आदि तो करते हैं किन्तु उसका सन् १९७३ की बात है, मेरे अन्तर्मानस में यह अहंकार नहीं करते। कितने ही व्यक्ति तप-त्याग विचार उबुद्ध हुआ कि मैं साधना के महामार्ग को और सेवा आदि नहीं करते पर उसका अहंकार करते स्वीकार कर अपने जीवन को चमकाऊँ, जब भावना । हैं। कितने ही व्यक्ति तप-त्याग सेवा आदि करते जागृत हुई तो मेरे वैराग्य की परीक्षा भी हुई, और हैं और साथ ही अहंकार भी करते हैं। कितने ही माता-पिता से अन्त में आज्ञा भी प्राप्त हो गई। व्यक्ति न सेवा, तप आदि करते हैं और न अहंकार और मैंने सद्गुरुणी जी श्री प्रभावती जी म. के ही करते हैं । इन चार प्रकारों में प्रथम प्रकार का पास आहती दीक्षा ग्रहण की, मैं सद्गुरुणी जी की साधक सर्वश्रेष्ठ साधक है। वह उस बहुमूल्य हीरे सेवा नहीं कर सकी। सद्गुरुणी जी की मेरे पर की तरह है जो अपने गुणों का उत्कीर्तन नहीं करते । असीम कृपा रही, उनकी अनुकम्पा का जब भी मुझे स्मरण आता है तब मेरी आँखों से आंसू टपकने उनके लिए कहा जा सकता है-'हीरा मुख से ना कहे, का लगते हैं। आज माताजी म. नहीं हैं किन्तु मेरी जीवन परम विदुषी साध्वीरत्न पुष्पवतीजी प्रथम नैया के खेवनहार सद्गुरुणी पुष्पवती जी हैं। उनका कोटि की साधिका है। जो निरन्तर ज्ञान-ध्यानअसीम उपकार मेरे पर है, आज मेरा हृदय आनन्द सेवा साधना के महा पथ पर चलने पर भी गर्व से विभोर है यह जानकर कि मेरे सद्गुरुणी जी दीज्ञा अछूती हैं। किंचित मात्र भी अहंकार उन्हें स्पर्श के ५० बसन्त पार कर ५१ वें बसन्त में प्रवेश करने नहीं कर सका है। जब भी इनसे मिलेंगे तब आप ४० | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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