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________________ साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ पात्रों की रंगाई भी। सिलाई और रंगाई को देख- संदर्शन आदरणीया बहिन महाराज में हुए। वे कर कई बार अच्छे-अच्छे कलाकार भी उस कला जीवन के अनमोल क्षण हमारे लिए वरदान रूप है। पर पुग्ध हो जाते हैं। मुझे यह जानकर हादिक आल्हाद हआ कि ज्ञान के साथ में आप में ध्यान रुचि, जप रुचि पुष्पवती जी म. ने संयम-साधना के पचास बसन्त भी अत्यधिक है। जप आपको बहुत ही प्रिय है। उल्लास के क्षणों में पार किये हैं, और इक्यानवे नियमित समय पर वे जप करती हैं । वर्षों से उनकी वसन्त में प्रवेश करने जा रहीं हैं, उन्हें इस अवसर जप साधना अविराम गति से चल रही है। वे सिद्ध पर अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने का जो निर्णय जप योगिनी हैं। कुछ वर्षों से तन को दृष्टि से आप लिया है यह स्तुत्य है। प्रथम वार एक साध्वी का अस्वस्थ रहीं पर आपके चेहरे पर वही अपूर्व तेज अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, यह हमारे है। जागरूकता है, आलस्य उनके आस-पास कही लिए गौरव का विषय है। नहीं है। स्फूर्ति और ताजगी के ही सदा दर्शन पूना सन्त-सम्मेलन की एक यह भी विशेषता होते हैं। रही कि हमारे भाई महाराज 'उपाचार्य' पद से महा महिम आचार्य सम्राट की असीम कृपा से अलंकृत हुए। भाई को इस पद पर अलंकृत देखकर ' महाराष्ट्र की पुण्य धरा पूना में सन्त व सती सम्मे- हम सभी वहिनों का हृदय वांसो उछलने लगा। लन का नव्य-भव्य आयोजन हुआ। जिस कारण हमने उस अवसर पर भाई का अभिनन्दन किया, अनेक सन्त-सतियों के दर्शनों का सौभाग्य भी हमें अब बहिन का अभिनन्दन करते हुए फूली नहीं समा प्राप्त हुआ । हमारी बड़ी बहिन आदरणीया पुष्प- रही हैं। वती जी महाराज के भी दर्शन हमें इस अवसर पर हमारी यही मंगल कामना है कि परम विदूष ...हुए। उनके सम्बन्ध में हमारे संघ के भाग्य-विधाता साध्वी श्री पुष्पवती जी म. पूर्ण स्वस्थ व प्रसन्न । और हमारे प्यारे श्रद्धेय उपाचार्य श्री देवेन्द्र भुनि रहकर सदा जिन शासन की विजय-वैजयन्ती फह जी म. से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के सम्बन्ध राती रहें। में जानकारी मिली थी। सुनने से अधिक गुणों के ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका महासतीजी श्री पुष्पवतीजी : एक प्रकाशस्तम्भ -साध्वी मंजश्री M. A. जैन सिद्धान्ताचार्य e sieseardesesedesosestostedesjodeoledesesesesedesesesedeseriesasesledeshsedesesesesaskedesesesesesese seskedasesedesh sastesseskelesedesdesesasteseseseshorse इस विश्वपटल पर असंख्य चित्र उभरते हैं और अपने कदम बढ़ा दिये। जिस दृढ़ता के साथ आपने मिट जाते हैं। उनके पीछे न उनकी रेखाएँ बचती हैं, शतार्ध संवत्सर निरन्तर-संयम यात्रा में बिताये हैं, न वर्णछटा। वह अपने आप में एक अनुठी मिसाल है। पर कुछ ऐसे चित्र भी होते हैं जो उभरते हैं महासतीजी का उत्कट संयमी जीवन जैनऔर उभरे ही रहते हैं। उनकी जीवन-साधना उन्हें श्रमणीवर्ग के लिये ही नहीं, समस्त नारी समाज के अधिकाधिक स्पष्ट, अधिकाधिक कान्तिमान एवं लिए गौरव प्रदान करने वाला है, किंबहुना समस्त अधिकाधिक ध्रव बनाती रहती विश्व को उदात्त एवं पवित्र संदेश देने वाला है ।। ऐसा ही एक भव्य-दिव्य चित्र है-महासतीजी Fa श्री पुष्पवतीजी म० । महासतीजी के चरणों में अभिवादनपूर्वक शुभ। स्व-पर हितमय जीवन-साधना में आप लघुवय भाव अर्पित करती हूँ कि महासतीजी भविष्य में भी (१४ वर्ष को उम्र) में ही संलग्न हुई और अध्ययन, दीर्घकाल तक अपने संयमी जीवन के प्रकाशस्तंभ चिन्तन-मनन एवं सेवाभाव के साथ कल्याण-पथ पर द्वारा हम सब का यात्रापथ आलोकित करती रहें। ४२ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन B .. ..... . . www.iaina
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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