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________________ मार्गदर्शन में अहमदाबाद के उपनगर कृष्णनगर में 'श्री आत्मानंद जैन सभा' की स्थापना की गई । इस सभा के उद्देश्य हैं- श्री आत्म वल्लभ समुद्र इन्द्र गुरु परंपरा के विचारों के अनुरुप कार्य करना, सातों क्षेत्रों का सिंचन करना, जैन साहित्य का प्रचार-प्रसार करना, सहधर्मी बन्धुओं का उत्कर्ष करना, जैन मध्यम वर्गियों को मेडिकल सहायता देना, मध्यम वर्गीय जैन युवकों को धंधे लगाना और जैन धर्म के महान उत्तम सिद्धान्तों का प्रचार करना आदि । निस्संदेह श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी की उल्लेखनीय उपलब्धियों में 'श्री आत्मानंद जैन सभा - अहमदाबाद' की स्थापना का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है । आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी महाराज का कार्यक्षेत्र बड़ौदा और पंचमहाल जिला है । इस क्षेत्र के सैंकड़ों गांवों में परिभ्रमण कर उन्होंने एक लाख लोगों को नूतन जैन बनाया है । इन लोगों में जैनत्व के संस्कार सिंचन हेतु धार्मिक पाठशालाओं की योजना क्रियान्वित है । इस स्वर्गारोहण शताब्दी के उपलक्ष्य में सौ गांवों को चुनकर सौ पाठशालाएं स्थापित की जा रही है । एक पाठशाला का इकत्तीस हजार रुपया है। इन रुपयों के ब्याज ये पाठशालाएं चलेंगी । इस योजना में गुरुभक्तगण बड़े उत्साह से अपनी दान गंगा बहा रहे हैं । इस स्वर्गारोहण शताब्दी के उपलक्ष्य में लुधियाना में विजयानंद डायग्नोस्टिक सेंटर का निर्माण हो रहा हैं । इसी तरह गुरुधाम लहरा में एक विशाल गुरु मंदिर निर्माण हो रहा हैं । इस प्रकार न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी के प्रसंग पर कई ऐतिहासिक, स्मरणीय और प्रेरक कार्य हुए हैं, हो रहे हैं। जिन कार्यों और उपलब्धियों का उल्लेख किया गया है उतने ही कार्य हुए हैं यह समझ लेना बड़ी भूल होगी। ये कार्य उदाहरण रूप हैं । इनके अतिरिक्त भी अन्य चिर स्मरणीय कार्य हो रहे हैं। गुरु विजयानंद द्वारा विरचित उपदेश बावनी को पंजाब की युनिवर्सिटियों के एम. ए के पाठ्यक्रम में स्थान दिलाने का प्रयत्न किया जा रहा है । उनके नाम से एक डाक टिकट भी जारी करने का पुरुषार्थ हो रहा है। एक-दो शोध प्रबन्ध भी लिखे जा रहे हैं । उनके द्वारा अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा कृत मंदिरों की शताब्दियां मनाई जा रही है। उनके नाम से कई विद्यालय, हॉस्पिटल, उपाश्रय, धर्मशाला और भवन आदि निर्मित हो रहे हैं । इस तरह के अनेक कार्य जिनकी सूचि बहुत लम्बी है इस स्वर्गारोहण शताब्दी की स्थाई स्मृति बने हैं, बने रहेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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