SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ओर उनकी पंचधातु की भव्य मूर्ति बिराजमान है। इस युग के किसी भी आचार्य की मूर्ति पर्वत पर प्रतिष्ठित नहीं है केवल गुरु विजयानंद को छोड़कर।। उनकी इस शताब्दी के उपलक्ष्य में उनकी मूर्ति की देहरी का नवीनीकरण किया गया और जेसलमेरी लाल पत्थर के कलात्मक गवाक्ष में मूर्ति की पुनर्प्रतिष्ठा की गई। इस अवसर पर श्री आत्मानंद जैन महासभा- पंजाब' के तत्त्वावधान में श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी स्पैशल ट्रेन का पालीताणा में आगमन हुआ था। अनगिनत गुरुभक्तों के गगन भेदी जयनादों के मध्य यह प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ था जो अब असंख्य गुरु भक्तों के स्मृति की स्थाई पूंजी बन गया है। गुरु विजयानंद स्वर्गारोहण शताब्दी की यह भी एक उल्लेखनीय उपलब्धी है। श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज ने ई. सन् १८७६ में अपना एक चातुर्मास भावनगर में किया था। सौराष्ट्र के प्रमुख सांस्कृतिक नगरों में भावनगर का सर्वोच्च स्थान है । उस सामंती युग में यह गोहिलवाड़ के नाम से जाना जाता था। जिस समय १८९६ में गुरु विजयानंद का गुजरांवाला में स्वर्गवास हुआ था। उस समय भावनगर के श्रीसंघ ने यहां उनकी स्मृति को स्थायित्व देने के लिए 'श्री जैन आत्मानंद सभा' की स्थापना की थी। इस सभा का उद्घाटन श्री वीरचंद राघवजी गांधी ने किया था। इस सभा ने गुरु विजयानंद द्वारा लिखित 'अज्ञान तिमिर भास्कर' 'शम्यक्त्वशल्योद्धार' का गुजराती अनुवाद, श्री आत्मानंद जन्म शताब्दी स्मारक ग्रन्थ आदि का प्रकाशन किया है । सभा के द्वारा श्री जैन आत्मानंद प्रकाश' नाम के मासिक पत्र का भी नियमित प्रकाशन होता है। कई दुर्लभ आगमों का प्रकाशन सभा ने किया है । इतनी पुरानी प्रकाशन संस्था आज समस्त भारत के जैन समाज में एक भी नहीं है । सभा का सौ वर्ष का यशस्वी सुदीर्घ इतिहास है। इस सभा के पदाधिकारियों की साग्रह विनती स्वीकार कर आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी महाराज अपने मुनि मंडल सहित भावनगर में पधारे । उनकी पावन निश्रा में सभा ने अपना शताब्दी महोत्सव प्रारंभ किया। यहां पर वड़वा जैन संघ के तत्त्वावधान में गुरु भक्त युवकों की एक संस्था स्थापित हुई। जिसका नाम 'श्री आत्मानंद जैन मित्र मंडल' (श्री आत्मानंद जैन फ्रेंड्स ग्रूप) रखा गया। सौराष्ट्र के बाद आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी महाराज एवं कार्यदक्ष आचार्य श्रीमद् विजय जगच्चन्द्र सूरीश्वरजी महाराज का पदार्पण अहमदाबाद में हुआ। ___ अहमदाबाद में आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज की ई. सन् १८७५ में मूर्ति पूजक परंपरा की दीक्षा हुई थी। यहां उनका एक चातुर्मास भी हुआ था। . यहां उनकी स्मृति को कायम करने के लिए आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से और कार्यदक्ष आचार्य श्रीमद् विजय जगच्चन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy