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________________ जीवनरामजी से व्यवस्थित पढ़ना सीखा। जोधामलजी स्थानकवासी परंपरा के जैन थे। उनके परिवार को धार्मिक संस्कार मिले हुए थे। इसलिए घर का वातावरण धार्मिक सुगंध से सुगंधित रहता था। किशोर आत्माराम पर भी इस वातावरण का प्रभाव पड़ा। उन्होंने नवकार मंत्र सीख लिया और जैन धर्म के नीति-नियमों से भी अवगत हो गए। ई. सन् १८५२ में जीवनरामजी आदि दो संत जीरा में चातुर्मास करने के लिए आए। प्रतिदिन प्रवचन होने लगा। जोधामलजी के साथ आत्मारामजी भी उनके प्रवचन में आते थे। एक दिन जोधारामजी ने संत जीवनरामजी से आत्माराम का परिचय कराया। और विनती की कि उसे वे धार्मिक पाठ सिखाएँ। संत जीवनरामजी से आत्माराम धार्मिक पाठ सीखने लगे। पंद्रह वर्षीय आत्माराम की बुद्धि-प्रतिभा देखकर जीवनरामजी चकित रह गए। प्राकृत भाषा के किसी भी सूत्र या संस्कृत श्लोक को केवल एक या दो बार पढ़ने से ही जिसे वह कंठस्थ हो जाता हो। उसकी स्मरण शक्ति कितनी तेज होगी? इसकी सहज कल्पना हो सकती है। एक ही महीने के भीतर आत्माराम ने स्थानकवासी परंपरा के सामायिक और प्रतिक्रमण के प्रारंभिक पाठों को कंठस्थ कर लिया। इसे पूर्वजन्म के संस्कार ही कह सकते हैं कि आत्माराम को यह धार्मिक परिवेश अत्यधिक प्रभावित करने लगा और तन-मन से वे उसी में तल्लीन रहने लगे। संत जीवनरामजी की प्रेरणा से युवक आत्माराम में वैराग्य के बीज पड़ने लगे। और उनकी मानसिकता त्याग की ओर ढलने लगी। चातुर्मास के अन्त में उन्होंने अपने मन से यह दृढ़ निर्णय कर लिया कि मुझे दीक्षा लेकर आत्म कल्याण करना है। चातुर्मास पूर्ण हुआ । जीवनरामजी ने जीरा से विहार करने का दिन निश्चित किया। एक दिन आत्माराम ने जोधामलजी से हाथ जोड़कर प्रार्थना के शब्दों में कहा-पूज्य जीवनरामजी के चार महीनों के सत्संग से मुझे संसार के प्रति अरुचि और दीक्षा जीवन के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ है । आप मुझे पूज्य जीवनरामजी के साथ जाने की और दीक्षा ग्रहण करने की अनुमति दीजिए। आत्माराम के मुख से दीक्षा ग्रहण करने की बात सुनकर जोधामलजी को आघात लगा। इसकी तो उन्हें कल्पना भी नहीं थी। वे अपने मित्र को दिए गए वचन के अनुसार आत्माराम के विवाह के विषय में सोच रहे थे। श्रीमद् विजयानंद सूरि: जीवन और कार्य २६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012023
Book TitleVijyanandsuri Swargarohan Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNavinchandra Vijaymuni, Ramanlal C Shah, Shripal Jain
PublisherVijayanand Suri Sahitya Prakashan Foundation Pavagadh
Publication Year
Total Pages930
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size22 MB
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