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________________ जीवनपरिचय तथा कार्य पूर्णिमा का शुभमंगल दिन था। शुभ संकेत के रूप से पचीस हजार रुपयों की स्वीकारता भी तत्काल हुई। काम लाखों का था । यथाकाल सब काम पूर्ण हुआ। ‘पयसा कमलं कमलेन पयः पयसा कमलेन विभाति सरः।' पानी से कमल, कमल से पानी और दोनों से सरोवर की शोभा बढती है । ठीक इस कहावत के अनुसार भगवान की मूर्ति से संस्था का अध्यात्म वैभव बढाही है। अतिशय क्षेत्र की अतिशयता में अच्छी वृद्धि ही हुई। अब तो मूर्ति के प्रांगण में और सिद्धक्षेत्रों की प्रतिकृतियाँ बनने से यथार्थ में अतिशयता या विशेषता आयी है। महाराज का आशीर्वाद ऐसे फलित हुआ । टंकोत्कीर्ण श्रतकी टंकोत्कीर्ण सुरक्षा वि. सं. २००० ( इस. १९४४ ) की घटना है। आचार्यश्री का चौमासा कुंथलगिरि था। श्री पं. सुमेरचंदजी दिवाकर से धर्मचर्चा के समय यह पता चला कि अतिशयक्षेत्र मुडबिद्री में विद्यमान धवलाजयधवला और महाबंध इन सिद्धान्त ग्रंथों में से महाबंध ग्रन्थ की ताडपत्री प्रति के करीब ५००० सूत्रों का भागांश कीटकों का भक्ष्य बनने से नष्टप्राय हुआ है । भगवान् महावीर के उपदेशों से साक्षात् सम्बन्धित इस जिनवाणी का केवल उपेक्षामात्र से हुवा विनाश सुनकर आचार्यश्री को अत्यंत खेद हुआ। आगम का विनाश यह अपूरणीय क्षति है। इनकी भविष्य के लिए सुरक्षा हो तो कैसी हो? इस विषय में पर्याप्त विचारपरामर्ष हुआ। अंत में निर्णय यह हुआ कि, इन ग्रंथराजों के ताम्रपत्र किए जाय और कुछ प्रतियाँ मुद्रित भी हो। प्रातःकाल की शास्त्रसभा में आचार्यश्री का वक्तव्य हुआ। संघपति श्रीमान् सेठ दाडिमचंदजी, श्रीमान् सेठ चंदुलालजी बारामती, श्रीमान् सेठ रामचंदजी धनजी दावडा आदि सज्जन उपस्थित थे। संघपतिजी का कहना था कि, जो भी खर्चा हो वे स्वयं करने के लिए तैयार है। फिर भी आचार्यश्री के संकेतानुसार दान संकलित हुआ जो करीब डेढ लाख हुआ। “ श्री १०८ चा. च. शांतिसागर दि. जैन जिनवाणी जीर्णोद्धार संस्था” नामक संस्था का जन्म हुआ। ग्रन्थों के मूल ताडपत्री प्रतियों के फोटो लेने का और देवनागरी प्रति से ताम्रपट करने का निर्णय हुआ। नियमावली बन गयी। कार्य की पूर्ति के लिए ध्रुवनिधी की वृद्धि करने का भी निर्णय हुआ । कार्य की पूर्ति शीघ्र उचित रूप से किस प्रकार हो इस विषय में पत्र द्वारा श्री समन्तभद्रजी से परामर्श किया गया। 'आर्थिक व्यवहार चाहे जिस प्रकार हो यदि कार्य पूरा करना है तो कार्यनिर्वाह की जिम्मेदारी किसी एक जिम्मेदार व्यक्ति के सुपूर्द करनी होगी। हमारी राय में श्रीमान् वालचंदजी देवचंदजी शाह बी. ए. को यह कार्य सौंपा जाय' इस सलाह के अनुसार कार्य की व्यवस्था बन गयी। आचार्यश्री के संकेत को आज्ञा के रूप में श्री सेठ वालचंदजी ने शिरोधार्य कर कार्य संभाला। प्रतियों के मुद्रण तथा ताम्रपत्र के रूप में टंकोत्कीरण का कार्य श्रीमान् विद्यावारिधी पं. खुबचंदजी शास्त्री, श्रीमान् पं. पन्नालालजी सोनी, श्रीमान् पं. सुमेरचंदजी दिवाकर, श्रीमान् पं. हिरालालजी शास्त्री, श्री. पं. माणिकचंदजी भीसीकर आदि विद्वानों के यथासंभव सहयोग से यह कार्य पूरा हो पाया। जिसमें ९ वर्षों का समय लगा। मुडबिद्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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