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________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ एक प्रशस्त विकल्प वर्षों से एक प्रशस्त संकल्प चित्त में था । जैसे मां के पेट में बच्चा हो । वह करुणा कोमल चित्त की उद्भट चेतना थी । महाराष्ट्र की जैन जनता प्रायः किस्तकार है । धर्मविषयक अज्ञान की भी उनमें बहुलता । आचार्यश्री का समाज के मानस का गहरा अध्ययन तो अनुभूति पर आधारित था ही । ' शास्त्रज्ञान और तत्त्वविचार ' की ओर इनका मुडना बहुत ही कठिन है । प्रथमानुयोगी जन मानस के लिए एक भगवान का दर्शन ही अच्छा निमित्त हो सकता है। इसी उद्देश को लेकर किसी अच्छे स्थानपर विशाल काय श्रीबाहुबली भगवान की विशाल मूर्ति कम से कम २५ फीट की खड़ी करने का प्रशस्त विकल्प जहां कहीं भी आचार्य श्री पहुँचे थे प्रगट करते थे । परंतु सिलसिला बैठा नहीं । 6 भावावश्यं भवेदेव न हि केनापि रुध्यते ' । होनहार होकर ही रहता है। अतिशय क्षेत्र बाहुबली (कुंभोज ) में वार्षिकोत्सव होनेवाला था । ' संभव है योगायोग से इसी समय सत्य संकल्प की पूर्ति हो जाय इसी सदाशय से आचार्यश्री के चरण बाहुबली की ओर यकायक बढे । १८ मील का विहार वृद्धावस्था में पूरा करते हुए नांद्रे से महाराज श्रीक्षेत्र पर संध्या में पहुँच पाये । इस संकल्प के लिए कमेटी और कार्यकर्ताओं की पूर्ण स्वीकृति मिलते ही एक नया अत्यंत पवित्र आनंदोल्लास का वातावरण पैदा हुआ । संस्था के मंत्री श्री सठे वालचन्द देवचन्दजी और मुनि श्री समंतभद्रजी से संबोधन करते हुए भरी सभा में आचार्यश्री का निम्न प्रकार समयोचित और समुचित वक्तव्य हुआ । जो आचार्यश्री की पारगामी दृष्टिसंपन्नता का पूरा सूचक था । ३८ ܕ 66 'तुमची इच्छा येथे हजारो विद्यार्थ्यांनी राहावे शिकावे अशी पवित्र आहे हे मी ओळखतो,. हा कल्पवृक्ष उभा करून जातो. भगवंताचे दिव्य अधिष्ठान सर्व घडवून आणील. मिळेल तितका मोठा. पाषाण मिळवा व लवकर हे पूर्ण करा. " मुनिश्री समंतभद्राकडे वळून म्हणाले, "तुझी प्रकृति ओळखतो.. हे तीर्थक्षेत्र आहे. मुनींनी विहार करावयास पाहिजे असा सर्वसामान्य नियम असला तरी विहार करूनही : क्षेत्र आहे. एके ठिकाणी राहाण्यास काहीच हरकत नाही.. काम पूर्ण होईल ! निश्चित होईल !! हा तुम्हा सर्वांना जे करावयाचे ते येथेच एके ठिकाणी राहून करणे. विकल्प करू नको. काम लवकर पूर्ण करून घे. आशीर्वाद आहे. " आपकी आंतरिक पवित्र इच्छा यहाँपर हजारो विद्यार्थी धर्माध्ययन करते रहे इसका मुझे परिचय है । यह कल्पवृक्ष खडा करके जा रहा हूं। भगवान का दिव्य अधिष्ठान सब काम पूरा कराने में समर्थ है। यथासंभव बडे पाषाण को प्राप्त कर इस कार्य को पूरा कर लीजिए। मुनि श्री समंतभद्रजी की ओर दृष्टि कर संकेत किया—“ आपकी प्रकृति को बराबर जानता हूं । यह तीर्थभूमि है । मुनियों ने विहार करते रहना चाहिए इस प्रकार सर्वसामान्य नियम है । फिर भी विहार करते हुए जिस प्रयोजन की पूर्ति करनी है उसे एक स्थान में यहीपर रहकर कर लो। यह तीर्थक्षेत्र है एक जगहपर रहने के लिए कोई बाधा नहीं है । विकल्प की कोई आवश्यकता नहीं है । जिस प्रकार से कार्य शीघ्र पूरा हो सके पूरा प्रयत्न करना । कार्य अवश्य ही पूरा होगा । सुनिश्चित पूरा होगा । आप सब को हमारा शुभाशीर्वाद है । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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