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________________ ४० आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ I के प्रतियों के फोटों की कारवाही के लिए बम्बई के सुप्रसिद्ध छायाचित्रकार श्री झारापकर का योग अच्छा रहा । श्रीमान् वालचंदजी ने महिनों मुडबिद्री रहकर इस कार्य को संपन्न किया । मुडबिद्री, भट्टारकपीठ के भट्टारक श्री चारुकीर्ति महाराज की व्यापक और अनुकूल दृष्टि तथा पंचों के द्वारा प्राप्त पूरा सहयोग का इस कार्य की पूर्ति में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है । ताम्रपत्र देवनागरी प्रति के आधार से देवनागरीलिपि में ही किये गये । जो कार्य बम्बई में मशीन द्वारा किया गया । धवला के उत्कीर्ण ताम्रपत्र फलटण में तथा जयधवला और महाबन्ध के ताम्रपत्र बम्बई के काळबादेवी जिनमंदिर में सुरक्षित रखे गये । मूल की प्रतियों के फोटो १००० के करीब है जो ६x८" साईझ में और १२ x १५" साईझ में है फलटण में सुरक्षित हैं । इस प्रकार श्रुतरक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य पूज्य आचार्यश्री के सहज प्रेरणामात्र से संपन्न हुआ । ग्रंथों को सं. २०१० में पू. आचार्यश्री के हीरक जयन्ति महोत्सव के समय हाथीपर महोत्सवपूर्ण जुलूस निकाला गया और ग्रंथ उत्साहपूर्ण वातावरण में आचार्यश्री से समर्पण किये गये । इस कार्य के लिए जो रकम संकलित की गयी उस ध्रुवनिधि के आमदनी में से तथा व्यक्ति विशेष द्वारा जो समय समय पर दान प्राप्त हुआ उसमें से निम्नलिखित ग्यारह ग्रंथों का प्रकाशन और विनामूल्य: वितरण भी हुआ । ग्रंथों की ५०० | ५०० प्रतियाँ छपवाई गयी । यह सब कार्य जिनवाणी जीर्णोद्धार संस्था के अन्तर्गत ' श्रुतभाण्डार और ग्रंथ प्रकाशन समिति' द्वारा संपन्न हुआ । प्रकाशित ग्रंथों की सूची निम्म प्रकार है १ श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार ३ श्री उत्तरपुराण ५ श्री अनगारधर्मामृत ७ श्री मूलाचार ९ श्री षट्खण्डागम ( सूत्र ) ११ श्री अष्टपाहुड २ श्री समयसार प्राभृत श्री सर्वार्थसिद्धि ४ ६ श्री सागारधर्मामृत ८ श्री कषायप्राभृत सूत्र श्री कुंदकुंद भारती १० संस्था के अध्यक्ष स्व० श्रीमान् जिनसेनजी भट्टारक रहे । कोषाध्यक्ष - स्व० श्रीमान् सेठ तुळजारामजी चतुरचंदजी शहा, बारामती रहे। बाद में आपके ही सुपुत्र श्रीमान् सेठ माणिकचंदजी ने कार्य को संभाला है। मंत्री श्रीमान् सेठ वालचंदजी देवचंदजी शहा तथा सहाय्यक के रूप में श्रीमान् स्व० माणिकचंदजी मलुकचंदजी दोशी वकील ने काम किया । अनन्तर श्रीमान् मोतीलालजी मलुकचंदजी दोशी का योगदान रहा । Jain Education International कुंथलगिरिक्षेत्र पर बृहज्जनबिम्ब का विकल्प कुंथलगिरि दक्षिण का सीमावर्ती सुंदर सिद्धक्षेत्र है । 'यहाँ पर एकाद विशालकाय बाहुबलि भगवान् की मूर्ति हो तो अच्छा होगा' यह भव्य आशय कमेटी के सबही सदस्यों को एकदम पसंद आया । पूज्य आचार्यश्री के समक्ष कार्य पूरा होना असंभव था । महाराजजी ने यमसल्लेखना का नियम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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