SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पं. टोडरमलजी और गोम्मटसार १५९ शास्त्राभ्यास का समय पाना महान् दुर्लभ है । एकेंद्रिय से असंज्ञीपर्यंत तो मन का ही अभाव है । संज्ञी होकर भी तिर्थंच गति में तो विवेक रहता नहीं । नरक गति में वेदना पीडित अवस्था रहती है । देवगति में विषयासक्त अवस्था रहती है । मनुष्यगति मिलना अत्यंत दुर्लभ है । उसमें भी योग्य सहवास, उच्चकुल, पूर्ण आयु, इंद्रियों की समर्थता, निरोगता, सत्संगति, धर्म की अभिरुचि, बुद्धि का क्षयोपशम इन सर्व साधन-सामग्री का मिलना उत्तरोत्तर दुर्लभ है । इसलिये इस शास्त्र का जैसे बने वैसे अभ्यास करना कल्याणकारी है । २. ग्रंथ विषय इस गोम्मटसार शास्त्र के मुख्य दो अधिकार हैं । १ जीव कांड, २ कर्म कांड | १ जीवकांड के मुख्य २२ अधिकार हैं । १ गुणस्थान अधिकार — इसमें मिथ्यात्वादि चौदह गुणस्थानों में जीवके परिणाम उत्तरोत्तरं कैसे विशुद्ध होते हैं इसका वर्णन किया है । प्रमाद का वर्णन करते समय संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट और समुद्दिष्ट का विशेष निरूपण किया है । सातिशय अप्रमत्त गुणस्थान में अधःकरण अवस्था में जो परिणामों की अनुकृष्टि रचना होती है उसका विशेष वर्णन किया गया है । कर्म प्रकृति के अनुभाग की अपेक्षा से अविभाग प्रतिच्छेद, वर्ग, वर्गणा, स्पर्द्धक, गुणहानि, नानागुणहानि, पूर्वस्पर्द्धक, अपूर्व स्पर्द्धक, बादरकृष्टि, सूक्ष्मकृष्टि, का विशेष निरूपण किया गया है। नव केवलब्धियों का, गुणश्रेणी निर्जरा के १२ स्थानों का विशेष वर्णन किया है । अन्त में अन्यमत में माने गये मोक्ष के अन्यथा स्वरूप का निराकरण करके मोक्ष का यथार्थ स्वरूप का निरूपण किया है । २ जीवसमास अधिकार - दूसरे अधिकार में १४ जीव समासों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है । जीव समासों के स्थानों का वर्णन करते हुये १ से लेकर १९ स्थान तक जीव के भेदों का वर्णन करके ९८ जीव समास स्थानों का वर्णन किया है । शंखावर्तादि योनि के तीन प्रकार, सन्मूर्च्छनादि जन्मभेदपूर्वक योनि के नव प्रकार, उनके स्वामी इनका वर्णन करके ८४ लाख योनि का वर्णन किया है । अवगाहना का वर्णन करते हुये सूक्ष्म निगोदी अपर्याप्त की जघन्य अवगाहना से लेकर संज्ञी पंचेद्रिय पर्याप्त की उत्कृष्ट अवगाहना तक ४२ अवगाहना स्थानों का वर्णन किया है । अवगाहना भेद जानने के लिये चतुःस्थानपतित-षट्स्थानपतित हानिवृद्धि का वर्णन किया है । अवगाहना भेद जानने के लिये मत्स्यरचना यंत्र बतलाया गया है । कुलभेदों का वर्णन करते हुये एकसौ साडे सत्याण्णव लाख कुल कोटि का वर्णन किया है । ३. पर्याप्त अधिकार मान के मुख्य दो भेद है । १ लौकिक, २ अलौकिक । १ संख्यामान, २ उपमा मान । पहले 'मान ' का वर्णन किया है। अलौकिक मान में द्रव्यमान के दो भेद हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy