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________________ १६० आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ १ संख्यामान के संख्यात-असंख्यात-अनंत आदि २१ भेदों का वर्णन है। संख्यामान में पण्णट्ठी, बादाल, एकठी, आदि संख्याओं का वर्णन है । २ उपमामान मे—पल्य आदि आठ भेदो का वर्णन है। व्यवहार पल्य के रोमों की संख्या निकालने का वर्णन है। तीन प्रकार के अंगुल का वर्णन है । उद्धारपल्य से द्वीप समुद्रों की संख्या निकालने का वर्णन है। अद्धापल्य से आयुका प्रमाण जाना जाता है सूच्यंगुल-प्रतरांगुल-घनांगुल-जगत्श्रेणी, जगत्प्रतर-जगत् धन से लोक का प्रमाण जाना जाता है। इसके बाद पर्याप्ति प्ररूपणा का वर्णन किया है। छह पर्याप्तिओं का स्वरूप, उनका प्रारंभ तथा पूर्ण होने का काल, उनके स्वामी इनका वर्णन है। लब्ध्य पर्याप्तक का लक्षण कह कर निरंतर क्षुद्रभवों का वर्णन करके प्रसंगवश लौकिक मान में प्रमाण राशि, फलराशि, इच्छाराशि आदि त्रैराशिक गणितका वर्णन है। सयोगी जिनको भी अपर्याप्तपना का संभवने का तथा लब्ध्य पर्याप्तक, निवृत्त्य पर्याप्तक, पर्याप्तक इनके यथासंभव गुणस्थानों का बर्णन है। ४. प्राण-प्ररूपणा इस अधिकार में प्राणों का लक्षण-भेद-कारण और उनके स्वामी का वर्णन किया है। ५ संज्ञा-प्ररूपणा-आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा इन चार संज्ञाओं का वर्णन कर के उनके कारण, उनके स्वामी इनका वर्णन किया है। ___ मार्गणा महाधिकार में प्रथम सांतर मार्गणा के अंतराल का तत्वार्थसूत्र टीका के अनुसार नाना जीव, एक जीव अपेक्षा से वर्णन कर के, तथा गुणस्थान अपेक्षा मार्गणाओं के काल का अंतर का वर्णन किया है। ६ गति मार्गणा-अधिकार--चार गति का वर्णन कर के पांच प्रकार के तिर्यंचों का, चार प्रकार के मनुष्यों का तथा पंचम सिद्धगति का वर्णन है। सात प्रकार के नारकी जीवों का तथ चार प्रकार के जीवों का उनकी संख्या का वर्णन किया है। प्रसंगवश पर्याप्त मनुष्य जीवों की संख्या निकालने के लिये 'कटपय पुरस्थवर्णैः' इत्यादि सूत्रद्वारा अंक संख्या को लिपिबद्ध करने की रीति बतलाई गई है। ७ इंद्रिय मार्गणा अधिकार में लब्धि और उपयोय रूप भावेंद्रिय का वर्णन करके बाह्य और अभ्यंतर रूप निर्वृत्ति और उपकरण के चार प्रकार के द्रव्येंद्रियों का वर्णन किया है। इंद्रियों के स्वामी इंद्रियों का आकार, उनकी अवगाहना का वर्णन करके अतींद्रिय जीवों का वर्णन किया है। ८ कायमार्गणा-अधिकार में पांच स्थावर काय और एक त्रसकाय जीवों का उनकी शरीर अवगाहना का वर्णन है । वनस्पति के साधारण तथा प्रत्येक इन दो भेदों का वर्णन करके प्रत्येक वनस्पति में जिस प्रकार सप्रतिष्ठित तथा अप्रतिष्ठित भेद है उसी प्रकार त्रस जीवों के शरीर में सप्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठितपने का वर्णन किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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