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________________ प्रवचनसार पं. धन्यकुमार गंगासा भोरे भ. महावीर के निर्वाण के पश्चात् गौतम, सुधर्माचार्य, और जंबूस्वामी तीन अनुबद्ध केवली हुए। उनके अनन्तर आ. प्रथम भद्रबाहु तक पाँच श्रुतकेवली हुए। यहाँ तक भावश्रुत और द्रव्यश्रुत की मौखिक परम्परा अविच्छिन्न चलती रही। पश्चात कालदोष से अंगपूर्व ज्ञान का क्रम से हास होता गया । पाँच छहसो वर्ष के नन्तर अंगश्रुत का लोप हुआ और पूर्वज्ञान का कुछ अंशमात्र ज्ञान शेष रहा । भविष्य में आगम की परम्परा अविच्छिन्न चलती रहे इसलिए जिनश्रुत अक्षरनिबद्ध करने की आवश्यकता प्रतीत हुई । ___ आचार्य धरसेन को अग्रायणी पूर्व के कुछ प्राभूतों का ही ज्ञान था और आचार्य गुणधर को ज्ञानप्रवाह पूर्व के कुछ प्राभूतों का ज्ञान गुरुपरम्परा से प्राप्त था। यह स्वल्प ज्ञान भी नष्ट न हो इस उद्देश से आचार्य धरसेन ने शिष्योत्तम पुष्पदंत और भूतबली को योग्य परीक्षा करके अपनी विद्या दी। उन्होंने ही धवल, जयधवल और महाधवल इनके मूलसूत्र षटखण्डागम की रचना की। _आचार्य गुणधर के द्वितीय श्रुतस्कध का ज्ञान गुरुपरम्परा से आचार्य कुन्दकुन्दाचार्य को प्राप्त था । इन्हें ज्ञानप्रवाद पूर्व के दशम वस्तु के तृतीय प्राभूत का ज्ञान था । उसकी भावभंगी पञ्चास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, अष्टपाहुड आदि ग्रन्थों में अक्षरनिबद्ध हुई । आज तक उपलब्ध सामग्रीनुसार निष्पक्ष संशोधन द्वारा आचार्य कुन्दकुन्द का काल ईसवी शताब्दि प्रथम शति सिद्ध होता है । इस प्रकार मोक्षमार्ग व अध्यात्मविद्या इसका निरूपण सरल और सुबोध शैली में सर्वप्रथम आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में ही देखने में आता है । यह आचार्य कुन्दकुन्द का मुमुक्षु जीवों पर महान् उपकार है । आज उन युगप्रवर्तक आचार्य कुन्दकुन्द का जो साहित्य उपलब्ध है उसमें कतिपय प्राभृत, द्वादशानुप्रेक्षा, प्राकृत भक्तिपाठ, पञ्चास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार आदि शास्त्र हैं। पञ्चास्तिकाय, प्रवचनसार और समयसार ये तीन ग्रन्थ अनमोल और महत्त्वपूर्ण हैं । वे ' ग्रन्थत्रयी' या 'प्राभूतत्रयी' नाम से विख्यात हैं । इन ग्रन्थों में तथा उनके अन्य साहित्य में ज्ञान की मुख्यता से आत्मतत्त्व का और मोक्षमार्ग का निरूपण है । ग्रन्थों के नामों से ही साधारणतः प्रतिपादित विषयों का बोध हो जाता है। श्रीसमयसार में युक्ति, आगम, स्वानुभव और गुरुपरम्परा इन चारों प्रकार से आत्मा का शुद्ध स्वरूप समझाया है। पञ्चास्तिकाय में कालद्रव्य के साथ पाँच अस्तिकायों का और नवतत्त्वों का स्वरूप संक्षेप में आया है। प्रवचनसार में यथानाम जिनप्रवचन का सार संक्षेप में प्रथित किया गया है । यह ग्रन्थत्रयी या प्राभृतत्रयी या उनका कुछ अंश को अपना आधार बनाकर उत्तरकालवर्ति अनेक आचार्यों ने और ग्रन्थकारों ने ग्रन्थनिर्मिति की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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