SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ व्योम्नीन्दुं चिक्रमिषेन्मेरुगिरिं पाणिना चिकम्पयेत् । गत्यानिलं जिगीषेच्चरमसमुद्रं पिपासेच्च ।। इन्होंने अपनी रचना में यह भी बतलाया है कि जिस जिनवचन महोदधि पर अनेक भाष्य लिखे गये उसको पार करने में कौन समर्थ है । यह तो सुनिश्चित है कि श्वेताम्बर आगम साहित्य पर जो भाष्य लिखे गये वे सब सातवीं शताब्दि के पूर्व के नहीं है । अतः यह स्वयं उन्हींके शब्दों से स्पष्ट हो जाता है कि तत्त्वार्थाधिगम मान्य सूत्रपाठ और भाष्य ये दोनों श्वेताम्बर आगमों पर लिखे गये भाष्योंके पूर्व की रचनाएं नहीं है । यह श्वेताम्बर परम्परामान्य तत्त्वार्थाधिगमसूत्र और उसके भाष्यकी स्थिति है । इनके ऊपर हरिभद्र और सिद्धसेनगणि की विस्तृत टीकाएं उपलब्ध होती हैं। ये दोनों टीकाकार भट्ट अकलंक देवके कुछ काल बाद हुए प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनकी टीकाओं में ऐसे अनेक उल्लेख पाये जाते हैं जो तत्त्वार्थवार्तिकभाष्य के आभारी हैं । इनके बाद ऐसी छोटी बडी और भी अनेक टीकाएं समय समय पर लिखी गई हैं जिन पर विशेष ऊहापोह प्रज्ञाचक्षु पं. सुखलालजी ने तत्त्वार्थसूत्र के विवेचन में किया है । इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र का संक्षेप में यह सर्वांगीण आलोडन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy