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________________ स्मृति-मंजूषा १०९ (४) इसी चौमासे में श्री नेमिसागरजी महाराज एक दिन सायंकाल नसियां के चबूतरे के नीचे पर घुटनों के बल खडे होकर सामायिक कर रहे थे कि ४-५ फुट लम्बा एक साप ४-५ बार लगातार महाराज के पैरों के समीप आ आकर के लौटता रहा । हम लोगों ने जब देखा, तो उसे पकडने के लिए आदमी को बुलाया । महाराज की दृष्टि उसपर पडी, तो उन्हों ने उसे नहीं पकडने के लिए हाथ से इशारा किया । महाराज की यह दृढता देखकर हम सभी उपस्थित लोग दंग रह गए । । जब हम पहुंचे तब (५) यहां के चौमासे के समय आचार्य महाराज को दूध के सिवाय सभी रसों का और हरित मात्र का त्याग था । उनके जैसी दृढता, शान्तता और वीतरागता के दर्शन अन्यंत्र बहुत ही दृष्टिगोचर हुए । (६) फलटन में सिद्धान्त ग्रन्थों के ताडपत्रों की प्रतियाँ आचार्य महाराज को भेंट करने के समय एक महोत्सव का आयोजन किया गया था । हम लोग भी ब्यावर से वहाँ गए थे मानस्तम्भ की प्रतिमाओं के अभिषेक का आयोजन हो रहा था । महाराज मचान के ऊपर मचान ऊंचा होने से हम लोगों को अभिषेक का कुछ भी दृश्य नहीं दिखाई दे रहा था पता नहीं कि महाराज की दृष्टि कैसी हम लोगों पर पड गई । और एक स्वयंसेवक को भेजकर हमें ऊपर बुलवा लिया । . हालांकि मचान के ऊपर अभिषेक करनेवालों के अतिरिक्त और कोई नहीं था । महाराज के इस वात्सल्यमय अनुग्रह से हम लोगों के हर्ष का पारावार नहीं रहा और हम लोग उनके चरणों में नत मस्तक हो गए । विराजमान थे, । (७) जब कभी भी बाहिर आचार्य महाराज के दर्शनों को पहुंचा, तो हमें सम्बोधित करते हुए कहा करते थे कि कब तक घरपर बैठे रहोगे ? अब तो घर को छोडो और आत्म कल्याण में लगो । आचार्य महाराज को हमारी सदा श्रद्धांजलि समर्पित है । धन्यता का अनुभवन प्रतिदिन सहजहि होता है श्री १०८ श्री सुबुद्धिसागर मुनिराज (भूतपूर्व संघपति श्री मोतीलालजी ) आचार्य श्री शांतिसागर मुनि महाराज के पूर्व मुनिमार्ग नहीं सा था । दक्षिण भारत में कुछ मुनि होंगे लेकिन जो भी थे वे शास्त्रोक्त मार्गानुसारी नहीं मालूम होते थे । आचार्य श्री के दीक्षा के बाद उन्होंने जैसा शास्त्रोक्त मुनिमार्ग चलाया था और जो कुछ शिथिलता थी वह दूर की। आप बालब्रह्मचारी थे । बाल्यावस्था में वैराग्यभाव था । उस समय दक्षिण भारत में भी मिथ्या देवदेवताओं का प्रचार बहुत था । उनके उपदेश से लोगों ने मिथ्यात्व का त्याग किया । उनका आहार भी जो मिथ्यात्व का त्याग करता था वहाँ ही होता था । उनकी तपस्या भी महान थी । उनके पहले साधु संघ रूप में नहीं थे । महाराज के समय में नई - दीक्षाएँ होकर साधु संघ की स्थापना हुई। उन्हों ने योग्य व्यक्तियों को ही दीक्षा दी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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