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________________ १०८ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ ब्यावर-चातुर्मास के दृष्टिदान करनेवाले कुछ संस्मरण श्री सेठ तोतालाल हीरालाल रानीवाला परमपूज्य चारित्रचक्रवर्ती आ. शान्तिसागरजी महाराज के दर्शन करने का सौभाग्य सर्वप्रथम हमें सन १९२७ में तीर्थाधिराज सम्मेदशिखरजी पर प्राप्त हुआ जब हम पूरे परिवार के साथ वहाँ गये थे। तभी हमारे सारे परिवार की यह भावना हुई कि यदि आचार्य महाराज का विहार हमारे प्रान्त में हो और ब्यावर में चातुर्मास का सुयोग प्राप्त हो, तो हम लोगों का जीवन कृतार्थ हो जाय । 'यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी' की नीति के अनुसार हम लोगों की भावना सफल हुई और वी. सं. १९९० में आचार्य महाराज के संघ का चातुर्मास ब्यावर में हुआ । उस समय हमारा सारा परिवार आनंद विभोर होगया, जब पूरे चौमासे भर हमें महाराज श्री के चरणों के समीप बैठने, उनका उपदेशामृत पान करने और सेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ । उस समय के कुछ संस्मरण इस प्रकार हैं । (१) इस चातुर्मास की सब से बडी उल्लेखनीय बात तो यह थी कि आचार्य महाराज के संघ के साथ ही आचार्य श्री शांतिसागरजी छाणी के संघ का भी चातुर्मास ब्यावर में ही हुआ था और दोनों संघ हमारी नसिजीयां में एकसाथ ही ठहरे थे। छाणीवाले महाराज बडे महाराज को गुरुतुल्य मान कर उठते बैठते, आते जाते, उपदेशादि देने में उनके सम्मान-विनय आदि का बराबर ध्यान रखते थे और बड़े महाराज भी उन्हें अपने जैसा ही मान कर उनके सम्मान का समुचित ध्यान रखते थे। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि छाणीवाले महाराज अवसर पाकर प्रतिदिन बडे महाराज का नियमित रूपसे वैयावृत्य करते थे। (२) हमारे नसियांजी में पूजन, अभिषेक आदि तेरह पंथ की आम्नाय से होता है और आचार्य श्री के अधिकांश व्यक्ति और दक्षिण से आनेवाले दर्शनार्थी वीसपंथी आम्नाय से अभिषेक पूजनादि करते हैं तब अपने संघ को एवम् दक्षिण से आनेवाले लोगों को लक्ष्य करके श्री आचार्य महाराज कहा करते थे कि, जहाँ जो आम्नाय चली आ रही हो, वहाँ उसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये और सब को अपनी अपनी श्रद्धा-भक्ति के अनुसार यह कार्य करना चाहिये ।। (३) उस चातुर्मासभर रा. ब. सेठ टीकमचन्दजी भागचंदची सोनी अजमेर वालोंका चौका लगा और उनके परिवार ने प्रतिदिन संघ को आहार देकर पुण्य उपार्जन किया। सेठ रावजी सखारामजी दोशी सोलापुर भी सपत्नीक आकर एकमास रहे और नसिया में अपनी पत्नी के साथ संगीतमय कीर्तन करते और संघ को आहारदान देते रहे । चौमासे भर शहर में तो वीसों चौके लगते ही थे, पर नसियाजी में भी २०-२५ चौके बराबर लगते रहे चौमासे भर यहाँ चौथेकाल जैसा दृश्य दिखाई देता रहा। बाहिर से, दूर दक्षिण देश से सैंकडों दर्शनार्थी आते रहे और हम लोगों को सबके समुचित आतिथ्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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