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________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ दीक्षा देने में वे बडे कठोर एवं प्रतिगामी थे । महाराज के पास कई लोग दीक्षा मांगते थे । लेकिन वे प्रौढ और सुयोग्य व्यक्ति देखकर ही दीक्षा देते थे । ११० हमें महाराज श्री के दर्शन ४५ वर्ष पहले मस्तकाभिषेकोत्सव के समय गोमटेश्वर में हुए । छे वहाँ से महाराज श्री को उत्तर भारत में लाने के लिए हमारे विचार हुए। उस समय महाराज के साथ १०८ मुनि वीरसागरजी, १०८ नेमिसागरजी, ऐल्लक चंद्रसागरजी, क्षुल्लक पायसागरजी, कुंथुसागरजी, पार्श्वसागरजी थे । हम लोगों का विचार मुनिसंघसहित तीर्थराज सम्मेद शिखरजी यात्रा जाने के लिए हुआ । इसके हम लोग महाराज के पास चातुर्मास में पहुँचे । और महाराजजी से प्रार्थना की, महाराज ! संघसहित शिखरजी चलिए " बहुत आग्रह करने पर महाराजजी ने प्रार्थना मान्य की । बम्बई में संघ की यात्रा के लिये सारी व्यवस्था बनाई । 66 ऐतिहासिक विहार विहार करते करते गुजराथ से महाराज श्री का विहार सौराष्ट्र ( गिरनार ) में हुआ । इसके बाद महाराज सोनगढ में पहुँचे । और एक घंटा प्रवचन करने के बाद तुरंत ही वापिस लौटे। उस समय रास्तों में ध. रामजी भाई आदि प्रमुख व्यक्ति रोज मोटार लेकर आते थे और महाराज श्री से शंका समाधान और आते समय कई प्रश्न लिखकर लाते थे । इस तरह महाराज के विहार से सारे भारत में अपूर्व धर्म प्रभावना हुई । कई नई दीक्षाएं हुई । और जनता जो धर्म मार्ग भूल गयी थी उन्हें मार्गदर्शन मिला । जब महाराज श्री का चौमासा हुआ, तब चौमासा के बाद कालु में महाराज का विहार हुआ । जहां जहां दिगंबरी घर सौ थे भाई साधुओं का विहार न होने से स्थानक में ही जाते आते थे। विहार होता था । परंतु महाराज श्री के पहुँचने पर उपदेश से सब जैनी बने। मंदिर में पूजापाठ आदि होने लगे। मुहपत्ती का त्याग हुआ। उनके कई लोग मुनि, ऐल्लक, क्षुल्लक, मंदिर भी था। क्योंकि कालु में मिथ्यामार्ग को लेकिन वहां सभी उसमार्गी साधुओं का छोड कर सच्चे कट्टर उपदेश से हर जगह आर्यिका क्षुल्लिका व्रती बने । श्रावकों ने बारा व्रत ग्रहण किये । हम लोगों ने महाराज श्री के उपदेश से ही बम्बई जैसे शहर में १००८ श्री पार्श्वनाथ स्वामी का मंदिर कालबोर्दे में बनाया । ४०-४५ साल तक हम लोग महाराज श्री के पास चौका लेकर जाते-आते रहे । दूसरी प्रतिमा के व्रत भी महाराज के पास हीरकमहोत्सव के समय फलटन में लिये थे । अन्तिम सल्लेखना महोत्सव महाराज श्री का कुंथलगिरि सिद्ध क्षेत्र में अभूत - पूर्व प्रभावना के साथ हुआ । भारतीय 1 जनता सागर उमड पडा था । आज भी मुनिधर्म हमने जो धारण शांति और समाधान का जीवन अनुभव में आ अनुभव होता है। Jain Education International किया वह भी महाराज श्री के आशीर्वाद का ही फल है । रहा है । पूज्य गुरुदेव के स्मरण से धन्यता का सहजही: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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