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________________ __ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ पुलिसमेन—आप किधर भी नहीं जा सकते। आचार्य श्री बीच सडक में खडे थे वही बैठ गए। पुलिसमन-आप यहाँ क्यों बैठे ? आचार्यश्री-तो मैं क्या करू ? आप बताइए । पुलिसमेन भौचक्कार रह गया, क्या उत्तर दे ? उसने आफिस फोन किया, आफिस ने कलेक्टर को फोन किया चौराहे पर हजारों की भीड थी। कलेक्टर ने आदेश दिया कि साधु को रोको मत जहाँ जाना चाहे चले जाने दो। पुलिसमेन ने उन से यथेच्छ विहार की प्रार्थना की और महाराज अपने नियत स्थान पर आगए । अब तो वे प्रति दिन शहर में जाते, एक जैन फोटो ग्राफर साथ रखते-जामामसजिद, लालकिला, सरकारी भवन, वायसराय भवन, असेंब्ली भवन आदि उन सभी स्थानों के सामने खडे होकर अपना फोटो लिवाया। सामान्य अनभिज्ञ जनता में चर्चा उठी, महाराज को फोटो खींचवाने का बड़ा शौक है । नगर की बडी २ बिल्डींग के सामने फोटो खिंचाई है । यह जनवाद उनके कानों तक पहुँची। दोपहर के व्याख्यान में उन्होंने इसका स्पष्टीकरण दिया । महाराज बोले, मेरे सुनने में आया है की महाराज को फोटो का बड़ा शौक है । भाई इस अर्द्ध दग्ध असंस्कारित जर्जर शरीर का क्या फोटो और गृहरहित तपस्वी वे चित्र कही टांगेगा ? क्या गले में लटकावेगा ? आप को यह प्रश्न है। मेरा अभिप्राय फोटो उतराने का यह है कि मुनि विहार सर्वत्र निबंध हो। यह प्रमाण आपकी भावी पीढी रखे कि देहली का कोई मंदिर-मसजिद-सरकारी भवन ऐसा नहीं बचा जहाँ जैन साधु का विहार न हुआ हो। महाराज कितने दीर्घदर्शी और निर्भय तथा निश्चल थे उसका यह ज्वलंत प्रमाण था । पता नहीं हमारी वैश्य समाज की महलों में वे चित्र आज है या नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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