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________________ स्मृति-मंजूषा आचार्य श्री १०८ चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागरजी के पुण्य दर्शन पं. . चंदाबाईजी, श्री जैनबाला विश्राम, आरा सन १९२२ में जब कि यहाँ उत्तरदेश में श्री मुनिराजों का विहार नहीं होता था । दक्षिण में ही - दर्शन होते थे । तब हम शेडवाळ गयी और श्री १७८ आचार्य श्री चारित्रचक्रवर्ती शांतिसागरजी महाराज के दर्शन किये । कुछ दिनों वहाँ रहकर धर्मलाभ लिया तब आचार्य श्री हिन्दी भलीभाँति नहीं बोल सकते थे । पश्चात् प्रत्येक चातुर्मास में आचार्य श्री के दर्शनों हम जाती थी । शेडवाल ( दक्षिण ), कटनी, दिल्ली, राजाखेडा, मथुरा, फलटन, कुम्भोज, उदयपुर ( आयरग्राम ) गजपंथा, शान्तिनाथ ( प्रतापगढ ) इन दस स्थानों के चातुर्मासों में आचार्य श्री के दर्शनों को करते हुए आहारदान देने का लाभ भी लिया । भारतयात्रा का सुयोग कुम्भोज ( हाथकलंगडे) में आचार्य श्री का चातुर्मास हुवा तब हम भी वहाँ १५ दिन वही थी, तथा श्री शेठे घासीलालजी बंबई से अपने पुत्रों के साथ आये थे, तब आचार्य श्री को उत्तरदेश में लानेका प्रोग्राम बनाया गया । श्री सम्मेदशिखर पर सेठ साहब ने मंदिर बनवाना प्रारम्भ किया । आचार्य श्री बहुत कम बोलते थे । साथ में पुस्तकादि का संग्रह भी नगण्य ही रहता था । साथ में साधु समुदाय भी कम था । १०१ एकबार आचार्य श्री अपनी दीक्षा के विषय में कहने लगे कि " पहले दक्षिण में मुनिमहाराजादि मन्दिर में बैठे रहते थे और एक श्रावक कमण्डलु उठा कर चलता था, तब उसी के साथ मुनिमहाराज जाकर एक घर में आहार ले लेते थे । आचार्यश्री ने स्वाध्याय किया तब यह क्रिया उनको खटकी और उन्होंने कहा कि हम चर्या करके ही आहार लेंगे, जैसा कि शास्त्रोक्त विधान है । इस पर श्रावकों ने कहा कि इस काल में यह नहीं हो सकेगा । तब आचार्य श्री ४-६ दिनों तक आहारार्थ नहीं उठे । अगत्या कई घर के लोग प्रतिग्रह करने के लिए खडे हुए, तब आचार्य श्री ने आहार ग्रहण किया । तबसे अबतक वही मार्ग चला आ रहा है । संकल्प में पूरी सावधानी आचार्य श्री ने हरिजन आन्दोलन के समय अन्न आहार लेना त्याग दिया था । तब श्रावकों को प्रसादजी से मिले तथा अन्य राज्य के संचालकों किन्तु सफलता नहीं मिली । हरिजन मन्दिरों में अकलूज में मुकदमा दायर किया गया । सेठ आरा आये और पटना से बैरिस्टर श्री. पी. आर. दास को बहस करने के जाकर राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र शासक खेर साहब से मिले, इत्यादि होता ही रहा, तत्र चिन्ता हो गई । हम दिल्ली और बम्बई जाकर श्री प्रधान जाकर प्रतिबिम्बों को छूने लगे गजराजजी गंगवाल कलकत्तावाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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