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________________ स्मृति-मंजूषा देहली चातुर्मास सम्भवतः विक्रम सं. १९८८ में देहली में आचार्य संघ का चातुर्मास था। मुझे भी देहली जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मैं एक दिन दोपहर में आचार्य श्री के पास बैठा चर्चा कर रहा था । ४०-५० आदमी उपस्थित थे। महाराज ने लघुशंका को जाने की इच्छासे कमंडलु उठाया और ज्योंही बाहिर दरवाजा के निकले त्यों ही १०-१५ आदमी दौड कर साथ हो गए। मैंने उनमें से २-१ को रोका कि आप साथ क्यों जारहे हैं ? वे तो लघुशंका से निवृत्त होकर अभी आ रहे हैं, वे सज्जन बोले, क्या हुवा ? साथ तो जाना ही चाहिये। मैंने कहा बैठिये, जाने की जरूरत क्या है ? वे मेरा हाथ झटक कर बोले तुम क्या समझे जाना जरूरी है। मुझे उत्तर से संतोष न हुआ तो एक अन्य सज्जन से मालुम किया तो यह जानकारी मिली कि इस नगर में नग्न साधुओं के विहार की आज्ञा सरकार से नहीं मिली, तब जैनी भाईयों की ओर से प्रार्थना करने पर कलेक्टरने कहा कि वे वस्त्र लपेटकर ही बाहीर निकल सकते हैं। जब जैन भाईयों ने इसे असंभव कार्य बताया तब यह दोनों पक्षोंमें तय हुआ की आप दस आदमी उनको घेरकर ही गमनागमन करें ताकि उनकी नग्नता का प्रदर्शन अन्य लोगों को न हो। जैनियों ने इसे स्वीकार कर लिया था अतः उसे पालते हुए ही हम बाहर महाराज के साथ सदा १० व्यक्ति रहते हैं। मुझे आश्चर्य था कि ऐसी शर्त के साथ चातुर्मास आचार्य महाराज ने कैसी स्वीकार किया। मैंने एकान्त में उनसे चर्चा की, तो यह ज्ञात हुआ कि उन्हें इस गोप्य वार्ता की अभी तक कोई जानकारी नहीं है, मेरे मुहसे हो वे आज यह जान रहे हैं। दूसरे दिन प्रभात उन्होंने घोषणा की कि हम धीरज पहाडी के श्री जिन मंदिर के दर्शन को जायंगे और हमारे साथ मार्गदर्शक केवल १ व्यक्ति ही जा सकेगा आप लोग नहीं। लोग घबडाए । नियम विरुद्ध विहार पर कलेक्टर जैनियों पर आपत्ति लावेंगे। सब कुछ कहने पर श्री आचार्य श्री बोले जैन दि. साधु को अपने विहार में किसी की आज्ञा नहीं चाहिये । आप निश्चित रहे । कलेक्टर आपत्ति करे तो आप कह दे कि हमारे कहने भी साधु इस प्रतिबंध को स्वीकार नहीं करते । परिणाम हम देखेंगे। प्रातः महाराज १ व्यक्ति को साथ लेकर दर्शनार्थ गए। लौटते वक्त चौराहे पर एक पुलीसमेन ने उन्हें रोका । महाराज खडे होगए। पुलिसमेन बोले, आप नग्न रूप में आगे नहीं जा सकते । महाराजश्री तो पीछे जाऊ ? पुलिसमेन-नहीं, आप पीछे भी नहीं जा सकते। महाराजश्री-फिर किधर जाऊं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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