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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ । एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ६४: तो शराब छोड़ दो। शराब के कारण ही आपकी तीन पीढ़ियां जवान आयु में ही काल का ग्रास बन गई हैं।" रावतजी ने पक्का मन करके आजीवन परस्त्रीगमन एवं शराब का त्याग कर दिया। वे दीर्घायु तक सुखी और स्वस्थ जीवन बिताते रहे। कोठारिया के बाद अनेक गाँवों जैसे आमेट, सरदारगढ़, लसाणी, ताल आदि के रावत जी एवं ठाकुर साहब ने काफी लाभ लिया। ग्रन्थ के विस्तार भय से यहां संक्षिप्त वर्णन किया है, अधिक 'आदर्श मुनि' के गुजराती संस्करण में है। सारण, सिरियारी होते हुए सोजत पधारे। वहाँ से पाली पधारे। पाली में ५ खटीकों ने जीवहिंसा का त्याग किया। महाराजश्री जोधपुर पधारने वाले थे परन्तु महामन्दिर से महाराज गुमाननाथजी ने महामन्दिर पधारने की प्रार्थना की । वहाँ व्याख्यान सुनकर उन्होंने दो प्रतिज्ञाएं की (१) जीवनपर्यन्त शिकार नहीं करेंगे और इस पाप-कार्य के लिए किसी को इशारा भी नहीं करेंगे। (२) महामन्दिर की सीमा में कैसा भी पदाधिकारी हो, उसको शिकार नहीं करने दिया जायेगा। जोधपुर में चातुर्मास प्रारम्भ हो गया। प्रवचनों की सर्वत्र प्रशंसा होने लगी। एक पंडितजी थे । वे विद्वान् तो थे पर स्वरों पर बहुत विश्वास करते थे। घर से चले तो सूर्य-स्वर चल रहा था। सोचा-'आज मुनिजी से ऐसा प्रश्न पूछ्गा कि उन्हें निरुत्तर कर दूंगा।' लेकिन जब तक महाराजश्री के समक्ष पहुँचे चन्द्र स्वर चलने लगा। बड़े असमंजस में पड़े। बारबार स्वर देखने लगे। प्रश्न न पूछ सके । महाराजश्री ने हंसकर कहा "पंडितजी ! जो पूछना है, निःसंकोच पूछिए । स्वर बदलने से ज्ञान लुप्त नहीं हो जाता है । आपका चन्द्रस्वर चल रहा है और मेरा सूर्यस्वर है तो इससे न प्रश्न में अन्तर पड़ेगा, न उत्तर में।" पंडितजी पर घड़ों पानी पड़ गया । श्रद्धापूर्वक गुरुदेव के चरणों में सिर झुकाकर चले गए। अहिंसा का प्रभाव : जलवृष्टि जोधपुर चातुर्मास की ही एक घटना है । श्रावण का महीना था । आकाश में एक भी बादल नहीं, सावन सूखा जा रहा था। लोग चिन्तित हो गए। पानी नहीं बरसा तो अकाल पड़ेगा। जोधपुर स्टेट के प्राइम मिनिस्टर ने घोषणा कराई-"कल सभी नर-नारी अपने-अपने इष्टदेवों का स्मरण करते हुए चौबीस घंटे बिताएँ।" प्रबुद्ध श्रावक श्री विलमचन्दजी भंडारी ने यह घोषणा सुनी तो आकर जैन दिवाकर जी महाराज को भी सुनाई और कहा "आप भी लोगों को २४ घंटे शांति-जाप की प्रेरणा दें।" महाराजश्री ने फरमाया "जब तक कसाईखानों में हिंसा होती रहेगी, इष्टदेवों के स्मरण मात्र से कुछ नहीं होगा। कल कसाईखाने भी बन्द रहने चाहिए। खून भरे हाथों की प्रार्थना कैसे सुनी जायेगी ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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