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________________ : ६३ : उदय : धर्म-दिवाकर का श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ महाराणा फतेहसिंहजी, युवराज भोपालसिंहजी ने चातुर्मास में कई व्याख्यान श्रवण किये। महावीर जयन्ती एवं पार्श्वनाथ जयन्ती के दिन अगते पलवाने और अभयदान के पट्टे लिखकर दिये। पुण्य-पाप का वर्णन सुनकर महाराणा साहब ने ६ पुण्यों और १८ पापों के नाम लिखवाकर मंगवाये एवं उनको पास में रखा तथा अपना जीवन बदल लिया । महाराणा साहब और युवराजकुमार ने आपसे उदयपूर फिर पधारने की कृपा करने की भावभरी विनती की। । एक दिन सूर्यगवाक्ष महल में मुनिश्री को आमन्त्रित किया। भक्तिपूर्वक वस्त्र बहराने की इच्छा प्रगट की। महाराणा साहब के पास रहने वालों ने कहा-'आपके लिए नहीं मँगाया है। वस्त्र भण्डार में तो एक लाख रुपये से अधिक के वस्त्र रहते ही हैं।' यह सुनने के बाद आपश्री ने अल्प वस्त्र लिया। उदयपुर के उपनगरों में भी विहार हुआ। वहाँ भी अनेक रावजी तथा जागीरदारों ने प्रवचन लाभ लिया। श्री जीवनसिंहजी मेहता के सुपुत्र श्री तेजसिंहजी ने जीवदया आदि के कार्यों में बहत सहयोग दिया। बत्तीसवां चातुर्मास (वि० सं० १९८४) : जोधपुर उदयपुर चातुर्मास पूर्ण करके आप बोदला होते हुए भाणपुर (मारवाड़) पधारे । वहाँ के ठाकुर साहब श्री पृथ्वीसिंहजी ने आजन्म प्रत्येक एकादशी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन शिकार न करने का नियम लिया। वरकाणा पधारे तो वहाँ के ठाकुर साहब ने एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या और सोमवार के दिन शिकार न खेलने की, पार्श्वनाथ जयन्ती के अवसर पर होने वाले मेले में जीवहिंसा न स्वयं करने और न होने देने की और प्रतिवर्ष ५ बकरों को अभय देने की प्रतिज्ञा की । इसी प्रकार की प्रतिज्ञाएँ मोखमपुर के ठाकुर साहब श्री हमीरसिंह जी, भीखाड़े के कुमार साहब श्री सरदारसिंहजी, फतेहपुर के ठाकूर साहब कल्याणसिंहजी आदि शासकों ने लीं। ___ कोट के ठाकुर साहब धोंकलसिंहजी और कोरड़ी के ठाकुर साहब फत्तेसिंहजी ने परस्त्रीत्याग, पौष वदि १० तथा चैत सुदि १३ को शिकार-मांसभक्षण आदि का त्याग, भादवा मास में शिकार त्याग, प्रतिवर्ष दो बकरों को अभयदान देना आदि प्रतिज्ञाएं लीं। भारोड़ी के ठाकुर साहब श्री अमरसिंहजी और यशवन्तसिंहजी ने जीवनपर्यन्त जीवहिंसा न करने और मांस-मदिरा का सेवन न करने का नियम लिया। पलाणा में माहेश्वरी बन्धुओं ने बहुत लाभ लिया । अब्दुल अली बोहरा ने ईद के सिवाय जीवहिंसा न करने का नियम लिया और रहमानबख्श मुसलमान ने जीवन भर जीवहिंसा करने का त्याग किया। कोठारिया के रावत साहब श्री मानसिंहजी सन्ध्या समय आपके दर्शनार्थ आये। अगले दिन प्रवचन सुना । प्रवचन समाप्त हुआ। जिस चौकी पर आपश्री बैठे हुए थे, उसे उठाया गया तो नीचे रुपये पड़े मिले । एक साधु ने कहा-'रावतजी ने रखे होंगे।' रावतजी गुरुदेव के सामने आए तब आपने गम्भीर स्वर में कहा"रावतजी! जैन साधु को रुपयों की भेंट नहीं दी जाती। यदि कुछ देना ही चाहते हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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