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________________ | श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ एक पारस-पुरुष का गरिमामय जीवन : ४४ : किया । सनवाड़ में हजारों श्रोताओं को उपदेश देने के बाद आप कपासण तथा हमीरगढ़ होते हुए मांडलगढ़ पधारे । सभी स्थानों पर लोगों ने त्याग पचखाण किए। वहाँ से आपने बूंदी की ओर विहार किया । मार्ग में एक स्त्री ने कहा-'मुनिवर ! इस भयंकर वन में आप क्यों जाते हो ? यहाँ तो चोरों का बहुत भय है।' आपने हंसकर उत्तर दिया-'जिसके लिए भय होता है, ऐसी कोई वस्तु हमारे पास है ही नहीं। चोर हमसे क्या ले जायगा।" बंदी में आपके प्रवचन सार्वजनिक स्थल पर हुए । दिगम्बर भाइयों ने भी बड़ा रस लिया। प्रत्येक प्रवचन समाप्त होने पर कंवर गोपाललाल जी केटिया (सुप्रसिद्ध सेठ केसरीलाल जी केटिया के सुपुत्र) खड़े होकर आपकी वंदना करते और आभार प्रदर्शित करते । बंदी से आप माधोपूर पधारे। माधोपुर में आपने एक बाई को दीक्षा देकर श्री फूलांजी आर्या जी की शिष्य बना दिया। वहाँ महावीर जयन्ती उत्सव धूमधाम से सम्पन्न हुआ। आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर एक मूसलमान भाई आलिम हाफिज ने जैन सिद्धान्तों को स्वीकार किया। मुंहपत्ती बांधकर वह सामायिक, पौषध करने लगा, दया पालने लगा। माधोपुर से विचरण करके आप श्यामपुर, वेतेड, अलवर होते हए दिल्ली पधारे। चांदनी चौक में पूज्यश्री मुन्नालालजी महाराज के दर्शन किये। वहाँ की जनता ने चातुर्मास का अत्यधिक आग्रह किया। वर्षा ऋतु भी सिर पर थी। अतः वहीं चातुर्मास का निर्णय हो गया। चातुर्मास शुरू होते ही दूर-दूर से दर्शनार्थी आने लगे । जम्मू नरेश के दीवान भी आए । आपके प्रवचनों से प्रभावित होकर यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण द्वारका प्रसाद ने जैनधर्म स्वीकार कर लिया। पच्चीसवाँ चातुर्मास (सं० १९७७) : जोधपुर दिल्ली का यशस्वी चातुर्मास पूर्ण करके आपश्री ने आगरा की ओर विहार किया । मार्ग में मथरा आये, वहाँ दिगम्बर जैनों का अधिक प्रभाव था । दिगम्बर जैन भाइयों के आग्रह पर आपश्री का एक प्रवचन दिगम्बर जैन मन्दिर में तथा दूसरा सार्वजनिक स्थान पर हुआ। मथुरा से गुरुदेव श्री आगरा पधारे। लोहामंडी और मानपाड़ा में आपके अनेक प्रवचन हये । यहाँ पं० रन पूज्यश्री माधव मुनि जी महाराज से आपका मिलन हुआ। पूज्य माधव मुनि जी महाराज शास्त्रार्थ महारथी थे। साहित्य के मर्मज्ञ और सुकवि थे। अनेक वर्षों से आप गुरुदेवश्री से मिलना चाहते थे। आगरा में यह सुयोग आया । व्याख्यान भी साथ में हुआ। आगरा से जयपुर होते हुए चैत शुक्ला ११ को किसनगढ़ पधारे । किशनगढ़ में महावीर जयन्ती उत्सव बड़े धूमधाम से हुआ । व्याख्यान में सभी जातियों के तीन हजार से अधिक श्रोता उपस्थित हुए। बहुत से तो बाहर गांव से आए थे। शास्त्रविशारद पूज्य श्री मन्नालालजी महाराज, पं० रत्न मुनिश्री देवीलालजी महाराज आदि भी विराजमान थे। आपने महावीर भगवान के जीवन पर सून्दर व्याख्यान दिया । किशनगढ़ से आप अजमेर पधारे। अजमेर में साम्प्रदायिक तनाव कुछ अधिक था । सन्त तो इस तनाव को महत्व नहीं देते थे, लेकिन अनुयायीजन इन मतभेदों को अधिक तूल देते थे। समी मुनिवर मुमैयों की हवेली में विराजे। दूसरे दिन ही पूज्य श्रीलालजी महाराज के आगमन का समाचार मिला । स्थानीय जैन संघ ने विनय की-"यदि आप (मुनिगण) उनके (पूज्य श्रीलाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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