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________________ : ४५ : उदय : धर्म-दिवाकर का श्री जैन दिवाकर-स्मृति-न्य जी महाराज के) स्वागतार्थ पधारें तो मतभेद भी दूर होंगे और जनता पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा।" जैन संघ की प्रार्थना स्वीकार हई। पूज्य मन्नालालजी महाराज की आज्ञा से आप पांच मुनिवरों के साथ न्यावर मार्ग की ओर पधारे । दोनों ओर के सन्तों का मिलन हुआ । आपने अपने साथ ही विराजने का आग्रह किया लेकिन पूज्य श्रीलालजी महाराज अपनी शिष्य मंडली सहित ढड्डा जी हवेली में ठहरे । सन्ध्या समय पूज्य खूबचन्दजी महाराज तथा जैन दिवाकरजी महारा अन्य 8 साधुओं के साथ पूज्य श्रीलालजी महाराज की सेवा में पधारे। उनसे एक ही स्थान पर सम्मिलित रूप से प्रवचन देने की प्रार्थना की। लेकिन पूज्यश्री ने आनाकानी की। व्याख्यान अलग-अलग ही हुए। अजमेर से जैन दिवाकरजी महाराज तबीजी पधारे। वहाँ पुनः पज्य श्रीलालजी महाराज का मधुर मिलन हुआ। पूज्यश्री ने आपकी बहुत प्रशंसा की, खूब स्नेह प्रदर्शित किया । . पुनः ब्यावर में जब जैन दिवाकर जी महाराज बाजार में व्याख्यान दे रहे थे तब पूज्य श्रीलालजी महाराज उधर से निकले । जैन दिवाकर जी महाराज ने पट्टे पर से उतर कर उनकी विनय की। साम्प्रदायिक मतभेद होते हुए भी जन दिवाकरजी महाराज के विचार कितने उत्तम और हृदय कितना विनय से भरा था। ब्यावर से बिलाडे पधारे । वहाँ दासफा परगना जसवन्तपुरा (मारवाड़) के कुवर चमन सिंह जी तथा डाक्टर जवेरीमल जी आये हुए थे। वे भी आपके प्रवचन से बहुत प्रभावित __ आसाढ़ सुदी ३ के दिन आपश्री अन्य सन्तों तथा पूज्य श्री मन्नालाल जी महाराज के साथ जोधपुर पधारे । यहाँ रावराजा रामसिंह जी की हवेली में विराजे । जनता प्रवचन सुनने को उत्सुक थी। उसी समय तार द्वारा समाचार मिला कि पूज्य श्रीलाल जी महाराज का आकस्मिक स्वर्गवास हो गया है। व्याख्यान स्थगित कर दिया गया और हादिक संवेदना प्रगट की गई। उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज ने पूज्य श्रीलाल जी महाराज का श्लोकबद्ध जीवनचरित्र लिखा; किन्तु साम्प्रदायिक कारणों से प्रकाशित न हो सका। जोधपुर चातुर्मास शुरू हो गया। जैन और जनेतर सभी लोगों पर प्रवचनों का बहुत प्रभाव पड़ा । वे सामायिक-प्रतिक्रमण सीखने लगे । सोनियों ने एकत्र होकर दया प्रभावना की । उनकी स्त्रियों ने एकान्तर तथा षष्ठ-अष्टम ब्रत किये। पूज्यश्री की सेवा में रहने वाले मुनिश्री फौजमल जी महाराज ने ६७ दिन की दीर्घ तपश्चर्या की। उनकी तपःपूर्ति का दिन अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निश्चय हुआ। ओसवाल भाई राजसभा (काउन्सिल) में गए। उनकी प्रार्थना पर महाराज प्रतापसिंह जी ने इस दिन हिंसा पूर्णरूप से बन्द करवा दी। एक-दो कसाइयों ने कहा भी कि 'हाकिमों और सरकारी रसोई को मांस कैसे मिलेगा?' तो महाराज ने आदेश दिया कि 'कोई भी मांस नहीं खायेगा। यहाँ तक कि शेरों और बाघों को भी दूध ही दिया जावेगा।' इस प्रकार इस दिन हिंसा पूर्ण रूप से बन्द रही। यहाँ तक कि कसाइयों के अतिरिक्त, हलवाई, भड़भजे, तेली, तमोली, लोहार आदि सबने अपना कारोबार बन्द रखा। कसाइयों ने दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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