SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 513
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ में प्रविष्ट नहीं होता। यह अन्तिम चरण उस समय सम्पन्न होता है जबकि अन्तिम मापक उपकरण के और हमारी चेतना को सीधा प्रभावित करने वाली चीज के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाता है । यह अन्तिम चरण हमारे वर्तमान ज्ञान के लिए अभी रहस्यों से घिरा है और अब तक क्वांटम यांत्रिकी (आधुनिक भौतिकी) या अन्य किसी भी सिद्धान्त के अधीन इसके सम्बन्ध में कोई स्पष्टी करण नहीं दिया जा सका है ।" आइन्स्टाइन से उनके गम्भीर रोग के दौरान पूछा गया कि क्या वह मृत्यु से डरते हैं, तब उन्होंने उत्तर दिया था, 'मैं सभी जीवित चीजों के साथ ऐसी एकात्मकता का अनुभव करता हूँ कि मेरे लिये यह बात कोई अर्थ नहीं रखती कि व्यक्ति कहाँ शुरू होता है और कहाँ समाप्त होता है ।" चिन्तन के विविध बिन्दु ४५४ आन्तरिक जगत की वास्तविकता का खंडन नहीं किया जा सकता, हिंशेलवुड ने कहा है" आंतरिक जगत की वास्तविकता का प्रत्याख्यान आसपास की सम्पूर्ण सत्ता को एकदम अस्वीकार करने के समान है। उसकी अर्थवत्ता को कम करना, जीवन के लक्ष्य को ही गिराना है और उसे 'प्राकृतिक चयन के उत्पाद' की संज्ञा देकर उड़ा देना निरा तर्काभास है ।' एक अन्य भौतिक-शास्त्री यान नायमान ने क्वांटम यान्त्रिकी की स्थापनाओं के सिद्धान्तों में चेतना (चित्र) के योग का समावेश किया, उन्होंने अनुमान किया कि तथाकथित 'तरंग पिटक' का हल निकालने के लिए चेतना से अन्तःकिया आवश्यक है, वह कहते हैं-'विषयी प्रेक्षण एक नयी सत्ता है, जो भौतिक परिमंडल से सापेक्ष है । लेकिन उसके बराबर नहीं की जा सकती । वस्तुतः विषयी के प्रेक्षण हमें व्यक्ति के बौद्धिक आभ्यन्तर जीवन में ले जाता है, जो स्वभावतः प्रेक्षणातीत है। हमें संसार को दो भागों में बाँटना चाहिये, एक प्रेक्षित प्रणाली, दूसरा प्रेक्षण करने वाला । पहले में हम सारी भौतिक प्रक्रियाओं का अनुसरण कर सकते हैं (कम से कम सिद्धान्त रूप में) 1 दूसरे में यह बात अर्थहीन है । दोनों के बीच की सीमा रेखा बहुत कुछ तदर्थ है । यह सीमा वास्तविक प्रेक्षण के शरीर के भीतर मनमाने ढंग से ले जायी जा सकती है। यही बात मनो भौतिक समांतरवाद के सिद्धान्त का सार है, लेकिन इससे इस तथ्य में कोई परिवर्तन नहीं आता कि हर विधि में सीमा (शरीर तथा चित्र के बीच ) कहीं रखनी जरूर होगी ।' स्व० योगानन्द परमहंस का क्रिया योग, राधास्वामी गुरु महाराज श्री चरनसिंह का सबत सुरत योग, महर्षि महेषयोगी का सर्वातीत ध्यान (ट्रांसेंडेंटल मेडीटेशन), इन सभी यौगिक विद्याओं में इस उपरि मानसिक अतीन्द्रिक या आत्मिक उन्मेष का अनुभव ध्यान में अचूक रूप से होता है । प्रत्येक प्राणि के शरीर के अदृश्य आभावलय (AURA) को देखकर उसकी मानसिक स्थिति का निर्णय करने के लिये लोबसांग रम्प ने एक यन्त्र आविष्कृत किया है। इस विलय -दर्शन से व्यक्ति की अचूक चिकित्सा हो सकती है । हिप्नोटिज्म यानी सम्मोहन विद्या से पूर्व जन्म स्मृति या जाति-स्मरण ज्ञान तक पहुंचने के अनेक सफल प्रयोग हुये हैं। अभी कुछ ही दशक पहले जर्मनी में एक महान् आधुनिक योगदर्शी हुआ है-डाल्फ स्टा इनर । उसने ऑकल्ट से अतीन्द्रिक आत्मानुभूति तक जाने के मार्ग का अन्वेषण किया था । गर्जिफ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy