SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 432
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ :३७६ : जैन इतिहास के एक महान तेजस्वी सन्त पड़े हए दिलों को जोड़ने का काम करती है, तोड़ती या काटती नहीं । जीवनभर वे इस प्रयत्न में लगे रहे कि स्थानकवासी समाज एक हो, उसमें एकता स्थापित हो । इतना ही नहीं, वे अन्य सम्प्रदाय के लोगों से भी सहिष्णुता व उदारता के साथ बर्ताव किये जाने के पक्षपाती रहे । स्थानकवासी समाज की एकता के लिए, संगठन की निर्मल भावना से अपने सम्प्रदाय के आचार्य पद को भी नहीं स्वीकारा । कोटा में स्थानकवासी, मूर्तिपूजक व दिगम्बर सम्प्रदायों के सन्तों आचार्यों को एक मंच पर लाने का उनका प्रयास अविस्मरणीय रहेगा। "महावीर जयन्ती सभी सम्प्रदायों को एक साथ मनानी चाहिए, क्योंकि भगवान महावीर सबके थे"-यह उनका अभिमत था। उन्हीं की प्रेरणा से उज्जैन में (सं० १९७८) सभी सम्प्रदायों ने मिलकर एक साथ महावीर जयन्ती मनाई। फूट सदा विनाशकारी होती है और एकता निर्माणकारी। समाज में परस्पर ऐक्यभावना के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं उठा रखी थी। हमीरगढ़ में हिन्दू-छीपों में चित्तौड़, इन्द्रगढ़ व कोटा आदि में ब्राह्मण समाज में जो फूट थी, उसे उन्होंने सदुपदेश से समाप्त किया । पाली-संघ में वर्षों से चला आ रहा वैमनस्य मुनिश्री की ज्ञान-गंगा के प्रवाह में बह गया। इस तरह के अनेक उदाहरण हैं, किस-किस का संकेत किया जाय । सद्ज्ञान व सदाचार-दोनों उनमें पूर्ण थे। उनका ज्ञान उनके आचार में प्रत्यक्ष व प्रतिच्छायित होता था। 'कर्म से सदाचरण व्यक्ति को यशस्वी व लोकप्रिय बना देता है'-यह शास्त्रोक्त वचन उनके जीवन में चरितार्थ होता दिखाई देता है। आगमोक्त विधि अनुसार, पाप-कर्म के बन्ध से बचने के लिए, वे संयत जीवन जीते थे। उनका चलना-उठना, बैठना, सोना, खाना, बोलना-सभी यतनापूर्वक होता था। ६. सत्य-भाषिता महात्माओं की सत्यभाषिता स्वाभाविक गुण है । वे जो कुछ अन्तर में हैं, उसे ही व्यक्त करते हैं । उनके मन, वाणी और कर्म में एकता होती है । मुनिश्री चौथमलजी महाराज भी जैसा सोचते थे, जैसा सद्ज्ञान उनमें था, उसी के अनुरूप उनकी करनी थी। वाणी और चरित्र में उनमें एकरूपता थी। यही कारण था कि उनका भाषण बड़ा प्रभावी होता था। उनके प्रवचन सरल, सरस, सुबोध, सुलझे हुए और गम्भीर चिन्तन से अनुप्राणित होते थे। 'सत्य' के प्रति उनकी निष्ठा उनके निम्नलिखित कथन से स्पष्ट होती है ___ "जहाँ झूठ का वास होता है, वहाँ सत्य नहीं रह सकता । जैसे रात्रि के साथ सूरज नहीं रह सकता और सूरज के साथ रात नहीं रह सकती, उसी प्रकार सत्य के साथ झूठ, और झूठ के ७ भेदात् विनाश: संघानाम् -(महा० भ० शां० पृ० ८१, ८५) ८ नाणेण विणा न हुँति चरणगुणा । -(उत्त० सू० २८, ३०) है सुभासियाए भासाए सुकडेण य कम्मणा। पज्जपणे कालवासी व जसं तु अभिगच्छइ॥ -ऋषिभासित-३३, ३४) १० जयं चरे जयं चिठे, जयं आसे जयं सए। जयं भुंजतो भासतो, पावं कम्मं न बंधई। -(दशवै० ४, ८) ११ मुखे सत्या वाणी, (नीतिशतक, ६५) १२ मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम। -(चाणक्यनीति) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy