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________________ ॥ श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ । व्यक्तित्व की बहरंगी किरणें : ३४८ : अभयदान पिप्पलगांव में एक भाई ने आपके उपदेश सुनकर अपने बकरे कसाई को न बेचने की प्रतिज्ञा ली। (उस भाई के यहाँ सैकड़ों बकरे रहते थे जिन्हें वह कसाई के हाथ बेचा करता था ।) छोटे-से गांव बेलबण्डी के नररत्न आवा साहब संपतराव ने 'अपने गाँव में जीवहिंसा न होने देने की प्रतिज्ञा ली। जैन दिवाकरजी महाराज सतारा में व्याख्यान दे रहे थे। एक आदमी उधर से चूहेदानी में बहुत से चहे लेकर निकला । पूछने पर मालूम हुआ—'इन चूहों को मार डाला जायगा ।' आपश्री ने श्रोताओं को इन चूहों की रक्षा की प्रेरणा दी। रावसाहब मोतीलालजी मुथा तथा सावाराम सीताराम बाजारे ने उस व्यक्ति को समझा-बुझाकर चूहों को अभयदान दिलाया। स्वधर्मी वात्सल्य विक्रम संवत् १९८७ का जैन दिवाकरजी महाराज का चातुर्मास अहमदनगर में था। वहाँ अपने प्रवचनों में 'स्वधर्मी वात्सल्य' का महत्व बताया । मोसर न करके यह पैसा सामियों की सेवा में लगा रहे तो आपके धन का सदुपयोग है। अहमदनगर के बाद गुरुदेव का चातुर्मास बम्बई में हुआ । १९८८ में बम्बई का चातुर्मास पूर्ण कर आप नासिक पधार रहे थे। नासिक से कुछ दूर पर सड़क के किनारे एक छोटे से मकान के बाहर एक भाई खड़ा था। उसको बहुत कम दिखाई देता था। वह सड़क पर चलने वालों से पूछ रहा था-"हमारे महाराज आने वाले हैं तुमने देखे क्या ?" थोड़ी दूर पर गुरुदेव अपने शिष्यों के साथ पधार रहे थे। एक साधु को पूछने लगा । साधु ने कहा-'गुरुदेव पधार रहे हैं।' उसने अपनी भाभी को आवाज दी वह भी बाहर आई। उनके फटे कपड़े और गिरी हुई अवस्था देखकर सभी का हृदय भर गया । उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज और हम अन्य सन्त लोग उसके घर गये। घर में खाने की खास सामग्री का अभाव था-दो-चार बर्तन पीतल के थे। नासिक पहुँच कर अहमदनगर के श्रीमान् ढोढीरामजी को उस भाई की करुणाजनक दशा के वर्णन का पत्र दिया। और स्वधर्मी बन्धुओं की सहायता की प्रेरणा दी। ढोढीराम जी ने अहमदनगर चातुर्मास में गुरुदेव के समक्ष मोसर नहीं करने का संकल्प किया। ५०००) रु० स्वधर्मी भाइयों की सेवा के लिए निकाले थे, उन्होंने अपना मुनीम भेजकर उस भाई को कपड़े व खाने की सामग्री आदि दिलाई तथा उसकी सहायता व्यवस्था की। नासिक श्रीसंघ ने भी स्वधर्मी भाइयों को सहायता देना अपना सर्वप्रथम कर्तव्य माना। X वास्तविकता यह है कि श्री जैन दिवाकरजी महाराज की प्रतिभा सर्वतोमुखी और दृष्टि विशाल थी। उनसे समाज का कोई दोष-कलंक छिप नहीं पाता था। वे कुरीतियों, रूढ़ियों और कुप्रथाओं के विनाश के लिए सदैव सचेष्ट रहते थे। वे जहाँ भी गए उन्होंने समाज-सुधार के प्रयत्न किये, लोगों को दुर्व्यसन छोड़ने की प्रेरणा दी। अस्पृश्यता, धर्म के नाम पर हिंसा, कन्या-विक्रय, मतकमोज, वृद्ध-विवाह, बाल-विवाह आदि कुरीतियों की बुराइयों को बताया और लोगों को इनके त्याग की ओर उन्मुख किया। समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए गुरुदेव द्वारा किये गए भागीरथ प्रयत्न चिर-स्मरणीय रहेंगे। देश के सामने जो समस्याएँ आज मुह बाए खड़ी हैं, उनके प्रति गुरुदेव ने समाज को पूर्व में ही सजग कर दिया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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