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________________ : ३४६ : समाज-सुधार में सन्त परम्परा श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ समाज-सुधार में संत - परम्परा एवं श्री जैन दिवाकरजी महाराज 4 श्री चतुर्भुज स्वर्णकार, शिक्षक एम० ए०, बी० एड०, साहित्यरत्न ( हिन्दी - अर्थशास्त्र ) विश्व के मानचित्र में एशिया महाद्वीप के दक्षिण में त्रिभुजाकार भूभाग पर जहाँ राम और कृष्म ने जन्म लिया, वहीं भगवान महावीर और बुद्ध ने भी अपने जन्म को साकार किया । वर्तमान युग में इसी पावन धरा पर युगपुरुष महात्मा गांधी ने संसार को मानवता का बोध पाठ दिया । भारत एक विचित्र देश है, संसार का शिरोमणि, जगद्गुरु मानव सभ्यता और संस्कृति का जन्मदाता, जहाँ विभिन्नता में एकता, और एकता में भी विभिन्नता के दर्शन होते हैं । इस राम, कृष्ण, महावीर और बुद्ध की जन्म भूमि में विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों का आदान-प्रदान होता रहा है । किन्तु भारतीय संस्कृति अपनी अक्षुण्णता को आज भी बनाये हुए कायम है। जिस प्रकार महासागर में चारों ओर से सरिताओं का नीर आता रहता है और सागर सभी सरिताओं की जलराशि अपने में समाये रहता है, उसी प्रकार भारतीय संस्कृति भी महासागर की भांति अपनी गम्भीरता, महानता एवं अक्षुण्णता बनाये हुए है । भारत की पावन धरा पर जहाँ ऋषियों और महात्माओं ने, मुनियों और महन्तों ने, साधुओं और सन्तों ने जन्म लेकर अपने ज्ञान के प्रकाश को संसार में विकण किया और अन्धकारमय जगत् को प्रकाशमान बनाया । “भरात् सः भरोति" रिक्तता चाहे ज्ञान की हो, चाहे अन्न या वस्त्र की हो या चाहे आवास की हो, यहां जम्मे साधु-सन्तों और नरेशों ने रिक्तता की खाई को सदैव पाट कर समता सिद्धान्त की रक्षा की । भारत कृषि प्रधान देश गिना जाता है, किन्तु इस कृषि-प्रधान देश में अनेक धार्मिक मत-मतान्तर, वर्ग-सम्प्रदाय उत्पन्न हुए, पनपे और कालकवलित हुए और कुछ आज मी अपना अस्तित्व बनाये हुए हैं- और विश्व शान्ति और मानवता की रक्षार्थ सतत् प्रयत्नशील है । भारत में तीन धर्मों का महत्त्व रहा है - (१) वैदिक धर्म, (२) जैन धर्म और (३) बौद्ध धर्म । प्राचीनता की कसौटी पर कौनसा धर्म प्रथम स्थान में आता है इसकी चर्चा के लिए यहाँ अवकाश नहीं है । किन्तु सभी धर्मों का प्रमुख सिद्धान्त " अहिंसा परमोधर्मः” ही आज आधार के रूप में मौजूद है । आज भी इन धर्मों की शाखाओं-प्रशाखाओं के अन्तर्गत विश्व कल्याण या मानव-कल्याण का परजनहिताय का कार्य किया जाता है । इस राम और कृष्ण की पावन धरा पर, महावीर की धर्मस्थली पर, गौतम और गाँधी की कर्मस्थली पर अनेक ऐसे सन्त महात्मा, साधु-संन्यासी, ऋषि-मुनि हुए हैं जिन्होंने मानव मूल्यों का ही मूल्यांकन कर मानव धर्म या लोक धर्म की प्रतिस्थापना कर नये मानवीय मूल्य एवं नये आयामों को उपस्थित कर लोक-मंगल और लोक-कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया । Jain Education International जब शिथिलाचार जितनी तीव्र गति से बढ़ता है, तभी समाज और राष्ट्र में विषमताएँ बढ़ती हैं । जब समाज में समता का अभाव पाया जाता जब समाज और राष्ट्र में विषमताओं और बुराइयों का एक छत्र साम्राज्य छा जाता है, तब उन विषमताओं को सामाजिक और राष्ट्रीय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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