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________________ : ३४७ : समाज-सुधार की दिशा में युगान्तरकारी प्रयल श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ जोधपुर में ओसवाल संगमेन्स सोसाइटी की कार्यकारिणी के आग्रह पर आपश्री ने १८ जनवरी, १६२५ को 'सामाजिक जीवन' पर एक व्याख्यान दिया । प्रभावित होकर कई सज्जनों ने विविध त्याग किये। सभा के सेक्रेटरी रायसाहब किशनलाल बाफणा ने निम्न प्रतिज्ञाएं लीं(१) अपने स्वार्थ के लिए और किसी प्रकार की इच्छा से झूठ नहीं बोलूंगा । (२) अपने और दूसरे सम्बन्धीजनों के मरण पर १२ दिन से अधिक शोक नहीं मनाऊँगा । (३) बारह महीनों में २४ दिन के सिवाय सदैव शील व्रत पालूंगा । (४) अपनी रक्षा के सिवाय दूसरों पर कभी क्रोध और ईर्ष्या नहीं करूँगा । इनके सुपुत्र असिस्टेण्ट सर्जन डा० अमृतलाल जी ने निम्न प्रतिज्ञाएं लीं (१) आज से जोधपुर नगर के ओसवाल भाइयों की चिकित्सा के लिए फीस नहीं लूंगा । (२) चौपड़, शतरंज आदि खेलों में समय बरबाद नहीं करूंगा । (३) वृद्ध विवाह में सम्मिलित नहीं होऊंगा। (४) प्रतिमास २० दिन शीलव्रत का पालन करूंगा। (५) स्वदेशी चमड़े के जूतों के सिवाय चमड़े की अन्य चीजों का प्रयोग नहीं करूंगा । बाली में आपके प्रवचन को सुनकर हाकिम साहब अम्बाचन्दजी ने निम्न प्रतिज्ञाएँ कीं(१) जीवनपर्यन्त प्रतिमास एक बकरे को अभयदान देना । (२) धूम्रपान का जीवन भर के लिए त्याग (आप २४ वर्ष से धूम्रपान करते थे) । (३) महीने में २५ दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना । जोधपुर सं० १७८४ में एक बहुत बड़ी बात हुई। गुरुदेव ने पर्युषण के दिनों में व्यापार बन्द कर धर्माराधना करने का उपदेश दिया जो लोगों के हृदय में उतर गया। गुरुदेव ने कहा"कुम्हार, धोबी, तेली आदि जातियाँ पर्युषण में अपना धन्धा बन्द रखती हैं और आज महाजन अपना धन्धा चालू रखते हैं यह कहाँ का न्याय है। पर्युषण पर्व का महत्त्व समझते हो तो आठ दिन, संवत्सरी, दो हो तो ६ दिन तक व्यापार नहीं करना ।” पूरी जैन समाज ने पर्युषण में अपना व्यापार बन्द कर दिया वह अभी तक चालू है । इतने बड़े नगर में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के होते हुए इस तरह व्यापार बन्द रखना साधारण बात नहीं है उस महापुरुष का प्रभाव है । आज भी अधिकांश लोग इसका पालन करते हैं । मारोड़ी में बोहरा अब्दुल अली ने बकरा ईद के अतिरिक्त जीव-हिंसा का त्याग किया । इसी प्रकार का त्याग चाँदखाँ और रहीमवस्थ ने भी किया। जोधपुर चातुर्मास में श्रावण सुदी १४-१५ को महाराजश्री के व्याख्यान कन्या - विक्रय पर हुए। सभी लोगों पर अनुकूल प्रभाव पड़ा एक स्वर से सभी श्रोताओं ने संकल्प किया- 'कन्याविक्रय जैसा निद्य कर्म कभी नहीं करेंगे और यहाँ तक कि ऐसा करने वालों से भोजन व्यवहार भी बन्द कर देंगे ।' मॉडल में भी माहेश्वरी परिवारों ने ऐसी ही प्रतिज्ञा ली । अन्य लोगों ने जुआ न खेलने, बीड़ी न पीने आदि का दृढ़ संकल्प किया। मृतकभोज बन्द हुए घोडनदी में जैन दिवाकरजी महाराज के प्रवचनों से प्रभावित होकर लोगों ने 'मृतक मोजों में न जाने' का नियम लिया । कुछ लोगों ने यह कहा कि यदि भरसक प्रयासों के बावजूद भी मृतकभोज बन्द न हो सके तो भोज पर होने वाले खर्च का आधा सद्कार्यों में व्यय करेंगे ।' अहमदनगर में भी आपके उपदेश को सुनकर कई लोगों द्वारा मृतक भोजन न करने की प्रतिज्ञा ली गई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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