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________________ :३१६ : संगठनात्मक शक्ति के जीवित स्मारक श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ चातुर्मास में बाहर से आने वाले दर्शनाथियों के आवास-भोजन की व्यवस्था, सार्वजनिक प्रवचनों का आयोजन तथा उनकी शान्ति-व्यवस्था तथा तपस्वीरत्न श्रीमयाचन्दजी महाराज के ३७ उपवासों की तपःपूर्ति उत्सव की व्यवस्था सुचारु ढंग से जब इस मण्डल और उसके सदस्य युवकों ने की, तब नगर के आबाल-वृद्ध सभी जैन भाइयों ने इस संस्था का महत्त्व समझा। वे इसके कार्यों को सराहने लगे । उन्होंने सोचा---'यदि इस संस्था की स्थापना नहीं हुई होती तो युवकों की शक्ति निर्माणकारी कार्यों में कैसे लगती।' पीपलोदा में दो संस्थाएं विक्रम सम्वत् १९८२ में जैन दिवाकरजी महाराज का आगमन पीपलोदा में हुआ। वहां के निवासियों में भक्तिभावना बहुत थी। किन्तु दो बातों का अभाव थाअच्छी नहीं थी और दूसरी भावी पीढ़ी में जैनत्व को सरक्षित रखने वाली संस्था का अभाव । संघ व्यवस्था के लिए एक मण्डल की आवश्यकता थी और जैनत्व की रक्षा पाठशाला से हो सकती थी। गुरुदेव ने स्थानीय श्रावक समाज को इन दोनों आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रेरणा दी। श्रावक-समाज ने सर्वप्रथम 'श्री जैन महावीर मण्डल' की स्थापना की। इसके बाद परम उदार समाज हितैषी दीवान साहब के कर-कमलों से सम्वत् १९८३ में चैत सुदी ८ मंगलवार के शुभ मुहूर्त में जैन पाठशाला की स्थापना हुई। इसके व्यय के लिए उसी समय कुछ फंड भी एकत्रित हुआ। जैन महावीर मण्डल, उदयपुर उदयपुर सारे मेवाड़ का केन्द्र है। यह जैनों का भी विविधरंगी क्षेत्र है। महाराणा जी की गुरुदेव के प्रति भक्ति के कारण जैन दिवाकरजी महाराज का सारे मेवाड़ में डंका बज गया। महाराजश्री ने यहां के जैनों को सांप्रदायिकता के दलदल से निकालने हेतु एक संस्था के निर्माण की प्रेरणा दी। उदयपुर में शीघ्र ही जैन महावीर मण्डल की स्थापना हुई । इसका उद्देश्य रखा गया-जैन शासन का भविष्य उज्ज्वल करना और युवा पीढ़ी में जैनत्व के संस्कार भरना, तथा आकृष्ट भावुक लोगों एवं बाहर से आये दर्शनार्थियों की उचित सेवा एवं देखभाल करना। जब आपश्री के चातुर्मास के दौरान ब्यावर निवासी रायबहादुर सेठ दानवीर श्री कुन्दनमलजी, उनके सुपुत्र श्री लालचन्दजी तथा पूरा परिवार आपके दर्शनार्थ आया तो वे जैन महावीर मण्डल की सेवा देखकर बहुत प्रभावित हुआ और फर्नीचर आदि के लिए धनराशि भेंट की। इस मण्डल ने कई बार जैन दिवाकरजी महाराज के सार्वजनिक प्रवचन भी कराए और बाहर से आये दर्शनाथियों की भी उचित सेवा की। गोगूदा में जैन पाठशाला उदयपुर चातुर्मास के पश्चात् जैन दिवाकरजी महाराज गोगुंदा पधारे । वहाँ अपने प्रवचनों में आपने स्थानीय श्रावकों का ध्यान जैनत्व की रक्षा हेतु एक पाठशाला की स्थापना की ओर आकर्षित किया । तदनुसार जैन पाठशाला की स्थापना हुई और स्थायी फंड एकत्रित कर इसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बना दी गई। जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति, रतलाम उत्तम साहित्य के प्रकाशन के लिए साहित्य-प्रकाशक समिति अथवा संस्था का होना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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