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________________ | श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३२० : आवश्यक प्रतीत हो रहा था। इस कार्य को रतलाम के श्रावकों ने जैनोदय पुस्तक प्रकाशक समिति की स्थापना करके पूरा किया। जैन दिवाकरजी महाराज एवं अन्य मुनिगण जिस साहित्य की रचना करते थे वह यहाँ से प्रकाशित होता था। विक्रम सम्वत् १९८३ में जब ब्यावर निवासी सेठ कुन्दनमलजी जैन दिवाकरजी महाराज के दर्शनार्थ उदयपुर आये तो ५२०० रुपये का एक सुन्दर भवन खरीदकर इस संस्था को दिया । अब तक इस संस्था से सैकड़ों छोटी-बड़ी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें गद्य-पद्य में चरित्र जीवनियां हैं और भजन-स्तवन भी। पहले निवेदन, पुण्यभूमि, रतलाम टाइम्स आदि पत्रपत्रिकाएं भी प्रकाशित होती रही थीं किन्तु अब उनका प्रकाशन बन्द हो चुका है । रतलाम की अन्य संस्थाएं जैन दिवाकरजी महाराज की प्रेरणा से रतलाम में अन्य कई संस्थाओं ने भी जन्म लिया। इनमें श्री जैन महावीर मंडल और एक जैन पाठशाला भी स्थापित हुई। जैन पाठशालाओं की स्थापना जैन दिवाकर जी महाराज का उद्घोष था-'जैनो! सोचो-समझो और युग को पहिचानो। भावी संतति में जैन धर्म के संस्कारों को जागृत करने तथा समाज को नैतिक दृष्टि से उन्नत और समृद्ध बनाने हेतु जैन पाठशालाओं की स्थापना अति आवश्यक है । इसमें लगाया हुआ धन सार्थक होता है । शिक्षण का बीज ज्ञान वट-रूप में फलेगा।' आपके इस उद्घोष का अनुकूल प्रभाव पड़ा। जैनियों ने अपने-अपने क्षेत्र में पाठशालाओं की स्थापना का निश्चय कर लिया। फलस्वरूप रायपुर (बोराणा), देलवाड़ा, सनवाड़, गोगुंदा, नाई, सोनई (महाराष्ट्र), इन्दौर, अहमदनगर आदि स्थानों में जैन पाठशालाएं खुलीं । महाराष्ट्र में सोनई से जैन पाठशाला की लहर शुरु हुई तो गांव-गांव में फैल गई। जहां-जहाँ जैन दिवाकर जी महाराज के चरण पड़े, पाठशालाएँ खुलती गई हैं । आपकी प्रेरणा से इन्दौर में मध्यभारतीय जैन सम्मेलन हुआ। उसमें गांव-गांव में पाठशालाएँ खोलने का प्रस्ताव पारित हुआ। इस प्रस्ताव से भी पाठशालाओं की स्थापना के कार्य को गति मिली। महावीर मंडलों की स्थापना जैन दिवाकरजी महाराज का विचार था जैन लोग पारस्परिक सम्प्रदायगत मतभेदों को भूलकर एक हों और समाज सेवा के कार्य में जुटें। इसीलिए उन्होंने स्थान-स्थान पर महावीर मंडलों की स्थापना कराई। अमलनेर में जब तीनों संप्रदायों (दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी) ने सम्मिलित रूप से महावीर जयन्ती मनाई तो वहाँ श्री महावीर मंडल की स्थापना हुई। इसी प्रकार, फालणा, इन्दौर आदि स्थानों पर भी श्री महावीर मंडल बनाये गये। जोधपुर में महिला आश्रम जोधपुर-जैन बहुल क्षेत्र है। यहाँ धर्म भावना भी अधिक है। जैन दिवाकरजी महाराज के उपदेशों से वहाँ की महिलाओं के धार्मिक संस्कारों में अभूतपूर्व प्रगति हई। इन धार्मिक संस्कारों में दृढ़ता कायम रखने और महिलाओं को सुशिक्षित करने के लिए महिला आश्रम की स्थापना की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। सर्वप्रथम इसके लिए एक भवन खरीद लिया गया । वहाँ महाराजश्री का प्रवचन रखा गया। व्याख्यान में आपश्री ने महिला जीवन, उसके महत्व और उनकी पारिवारिक तथा सामाजिक जिम्मेदारियों पर सर्वांगपूर्ण प्रकाश डालते हुए महिला आश्रम की उपयोगिता बताई। महिलाओं पर तो इसका प्रभाव पड़ा ही, पुरुष वर्ग भी बहुत प्रभावित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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